________________ सप्तम अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र 636 296 विवेचन--(पांच प्रकार के अक्ग्रह)-प्रस्तुत सूत्र में पांच प्रकार के अवग्रह, अवग्रहदाताओं की दृष्टि से बताए हैं / अर्थात् देवेन्द्र सम्बन्धी अवग्रह राजा सम्बन्धी अवग्रह आदि / अथवा देवेन्द्र का अवग्रह, राजा का अवग्रह आदि पांच प्रकार के अवग्रहों की याचना साधु के लिए जिनशासन में विहित है। 636. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं / 636. यही उस भिक्षु या भिक्षुणी का समग्र आचार है, जिसके लिए वह अपने सभी ज्ञानादि आचारों एवं समितियों सहित सदा प्रयत्नशील रहे / // सत्तमज्झयणं उग्गहपडिमा समत्ता॥ // प्रथम चूला सम्पूर्ण // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org