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________________ 240 आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध को ग्रहण करने में क्रीत. आधाकर्म, औशिक, स्थापना, अनिसृष्ट आदि दोषों के विषय में कहा है। इन दोषों से युक्त वस्त्र ग्रहण का निषेध है। बहमल्य-बहआरंभ-निष्पन्न वस्त्र-निषेध 557. से भिक्खू वा 2 से ज्जाइं पुण वत्थाई जाणेज्जा विरूवरूवाइं महद्धणमोल्लाई, तंजहा-आईणगाणि वा सहिणाणि वा सहिणकल्लाणाणि बा आयाणि वा कायाणि वा खोमियाणि वा दुगुल्लाणि वा पट्टाणि वा मलयाणि वा पत्तण्णाणि वा अंसुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वा गज्जलाणि वा फालियाणि वा कोयवाणि वा कंबलगाणि वा पावाराणि वा, अण्णतराणि वा तहप्पगाराई वत्थाई महद्धणमोल्लाई लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। 558. से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण आईणपाउरणाणि वत्थाणि जाणेज्जा, तंजहा-उद्दाणि वा पेसाणि वा पेसलेसाणि वा किण्हमिगाईणगाणि वा णोलमिगाईणगाणि वा गोरमिगाईणगाणि वा कणगाणि वा कणगकताणि वा कणगपट्टाणि वा कणगखइयाणि वा कणगफुसियाणि वा वग्घाणि वा विवग्घाणि वा आभरणाणि वा आभरणविचित्ताणि वा अण्णतराणि वा तहप्पगाराइं आईणपाउरणाणि वत्थाणि लाभे संते गो पडिगाहेज्जा। 557. संयमशील साधु-साध्वी यदि ऐसे नानाप्रकार के वस्त्रों को जान, जो कि महाधन से प्राप्त होने वाले (बहुमूल्य) वस्त्र हैं, जैसे कि-आजिनक (हे आदि के चर्म से बने हुए) श्लक्ष्ण-(सहिण) वर्ण और छवि आदि के कारण बहुत सूक्ष्म या मुलायम, श्लक्ष्णकल्याण-सूक्ष्म और मंगलयम चिन्हों से अंकित, आजक-किसी देश की सूक्ष्म रोएँ वाली बकरी के रोम से निष्पन्न 1. जैनसिद्धान्त बोल संग्रह भाग 5 बोल 865 10 161-162 2. 'क्षौमिक' का अर्थ वृत्तिकार ने सामान्य कपास से बना हुआ बस्त्र किया है, लेकिन यहाँ महँगे वस्त्रों की सूची में उसे दिया है, इसका रहस्य यह है कि जो सुती वस्त्र हो. लेकिन बहुत ही बारीक हो, उस पर सोने-चाँदी आदि के किनारी गोटे लगे हए हों तो वह बहुमूल्य हो जाएगा। निशीथचूणि उ०७ में तो उसका अर्थ ही दूसरा किया है- 'पोंडमया खोम्मा, अण्णे भण्णंति रुक्खेहितों निग्गोच्छंति, जहा ब.हिंतो पादगा सहा ।'-पुष्यों के रेशे से बना या वृक्षों से निकलने वाले रस से बना हुआ वस्त्र / 3. 'कणगकंताणि' के बदले पाठान्तर है---कणगंताणि / अर्थ है-जिसकी किनारी सुनहरी है, सोने की है। 4. 'कणगपट्टाणि' के बदले पाठान्तर है---कणगपठ्ठाणि / अर्थ है--जिसके पृष्ठभाग सोने के हैं। 5. 'कणगखचितं' का अर्थ निशीथ चणि में किया गया है.-कणगसुत्तेण जस्स फुल्लिया पाडिता तं 'कणगखचितं' सोने के सूत्र (धागे) से जिस पर फूल अंकित किये हैं, वह है--कनक-खचित / 'आमरणा आभरणविचित्ता' इन दोनों का अर्थ निशीपचणि में यों दिया है---"एकाभरणेन मंडिता आभरणा। छपत्रिक-चंदलेहिक-स्वस्तिक-घंटिक-मोत्तिकमादीहि मंडिता आभरणविचित्ता' / अर्थात् --एक आभूषण से मंडितवस्त्र आभरणवस्त्र, और छपत्रिक (पत्र, चन्द्रलेखा, स्वास्तिक धुटिका आदि नमूनों से निष्पन्न) वस्त्र को आभरणविचित्र कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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