________________ तृतीय अध्ययन : तृतीय उद्देशक : सूत्र 504-5 167 घसीटो, जवसाणि-जौ, गेहूं आदि धान्य / संणिविट्ठ =पड़ाव डालकर पड़ा हुआ। गापिंडोलगा---ग्राम से भीख मांग कर जीविका चलाने वाले ; पसिणाणि==प्रश्न, आसा=अश्व / ' 503. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणोए वा सामग्गियं जं सबट्ठीहि [समिते सहिते सदा जएज्जासि त्ति बेमि / 503. यही (संयम पूर्वक विहारचर्या) उस भिक्षु या भिक्षुणी की साधुता की सर्वांगपूर्णता है; जिसके लिए सभी ज्ञानादि आचाररूप अर्थों से समित और ज्ञानादि सहित होकर साधु सदा प्रयत्नशील रहे। __ --ऐसा मैं कहता हूँ। // द्वितीय उद्देशक समाप्त // तइओ उद्देसओ तृतीय उद्देशक मार्ग में वप्र आदि अवलोकन-निषेध 504. से भिक्खू वा 2 गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा फलिहाणि वा पागाराणि वा' जाव दरीओ वा कूडागाराणि वा पासादाणि वा णूमगिहाणि वा रुक्खगिहाणि वा पन्वतगिहाणि वा रुक्खं वा चेतियकडं थूभं वा चेतियकडं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा णो बाहाओ पगिज्झिय 2 अंगुलियाए उद्दिसिय 2 ओणमिय 2 उण्णमिय 2 णिज्झाएजा / ततो संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा। 505. से भिक्खू वा 2 गामाणुगाम दूइज्जमाणे, अंतरा से कच्छाणि वा दवियाणि 1. (ख) पाइअ सद्दमहष्णवो (ख) आचारांग वृत्ति पत्रांक 381 2. अंतरा से वप्पाणि वा.....' आदि कुछ पदों का विशेष अर्थ चर्णिकार के शब्दों में-'बप्पाणि ते चेव, कुडामारं-रहसंठितं, पासाता=सोलसविहा, णमगिहा-भूमिगिहा, भूमीघरा, रुक्खगिहंजालीसंछन्न', पव्वयगिहा=दरीलेणं वा, रुक्खं वा चेइयकडं-वाणमंतरठवियगं पेढबा चिते, एवं थूभं वि / ....' -अर्थात् वप्र= का अर्थ पूर्ववत् समझें। कूडागारं=एकान्त रहस्य संस्थान, पासाता=सोलह प्रकार के प्रासाद, णूमगिहा=भूमिगृह, रुक्खगिह =जाली से ढका हुआ वृक्षगृह, पन्चयगिह-गुफा या पर्वतालय, रुवं वा चेइयकडं-चैत्यकृत वृक्ष, जिसमें कि वाणव्यन्तर देव की स्थापना की होती है। इसी प्रकार चैत्यकृत स्तूप भी समझ लेना चाहिए। 3. यहाँ जाव शब्द में पागाराणि वा से लेकर दरीओ वा तक का पाठ है। 4, 'कच्छाणि वा' आदि पदों का चणिकारकृत अर्थ---'कन्छाणि वा-जहा णदीकच्छा, दवियं =सुवण्णा रावणो वीयं वा, वलयं णदिकोप्परो, णमं=भूमिघरं, गहणं-गंभीर, जत्थ चक्कमंतस्स कंटगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org