________________ तृतीय अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र 463-67 462. साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए गृहस्थों के साथ बहुत अधिक वार्तालाप करते न चलें, किन्तु ईयर्यासमिति का यथाविधि पालन करते हुए ग्रामानुग्राम विहार करें। विवेचन-विहार के समय ईर्यासमिति का ध्यान रहे इस सूत्र में मुनि को विहार करते हुए गृहस्थों के साथ लम्बी-चौड़ी गप्पें मारते हुए चलने का निषेध किया है, क्योंकि बातें करने में ध्यान ईर्या से हट जाता है, ईर्याशुद्धि ठीक तरह से नहीं हो सकती, जीवहिंसा की संभावना है। 'परिजविय' का अर्थ वृत्तिकार ने किया है-अत्यधिक वार्तालाप करता-करता।' गंधाप्रमाण-जल-संतरण-विधि 463. से भिक्ख वा 2 गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से जंघासंतारिमे उदगे सिया, से पुवामेव ससोसोवरियं कार्य पाए य पमज्जेज्जा, से पुवामेव सिसोसोवरियं कायं पाए य] पमज्जेता एगं पादं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा ततो संजयामेव जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रोएज्जा। 464. से भिक्खू वा 2 जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीयमाणे गो हत्थेण हत्थं जाव' अणासायमाणे ततो संजयामेव जंघासंतारिमै उवगे अहारियं रीएज्जा। 465. से भिक्खू वा 2 जंघासंतारिमे उदए अहारियं रोयमाणे णो सायपडियाए' गो परिदाहपडियाए महतिमहालयंति उदगंसि कायं विओसेज्जा / ततो संजयामेव जंघासंतारिमेव उदए अहारियं रोएज्जा। 496. अह पुणवं जाणेज्जा-पारए सिया उदगाओ तीरं पाणित्तए। ततो संजयामेव उदउल्लेण वा ससणिद्ध ण वा काएण दगतीरए चिट्ठज्जा। 467. से भिक्खू वा 2 उदउल्लं वा कायं ससणिद्ध वा कायं णो आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा [.] 1. आचारांग वृत्ति पत्रांक 380 'अहारियं रोएज्जा' का भावार्थ वृत्तिकार के शब्दों में यों है.---'अहारियं रीएज्जा' ति यथा ऋजु भवति तथा गच्छेत नादवितर्द विकारं वा कुर्वन् गच्छेत् / अर्थात्-अहारियं का भावार्थ है जैसे ऋजु (सरल) हो, वैसे चले, आड़ा टेड़ा विकृत करता हुआ न चले।। 3. यहाँ जाव शब्द सू० 487 अनुसार हत्यं से लेकर आणासायमाणे तक के पाठ का सूचक है। 4. इसके स्थान पर पाठान्तर हैं---आहारीयं, अहारीयं अहारीयमाणे / 5. सायपडियाए के स्थान पर सायवडियाए पाठान्तर है। 6. बियोसेज्जा के स्थान पर वितोसेज्जा का पाठान्तर है। 7. [0] इस चिन्ह से 'पम्मज्जेज्ज वा से लेकर 'दुईज्जेज्जा' तक का समग्र पाठ समझें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org