________________ ततीय अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र 484-6.1 187 - बीओ उद्देसओ द्वितीय उद्देशक नौकारोहण में उपसर्ग आने पर : जल-तरण 484. से णं परो गावागतो गावागयं वदेज्जा आउसंतो समणा ! एतं ता तुम छत्तगं वा जाव चम्मछेदणगं वा गेण्हाहि, एताणि ता तुमं विरूवरूवाणि सत्थजायाणि धारेहि, एवं ता तुमं दारगं वा दारिगं वा पज्जेहि,' णो से तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणोओ उवेहेज्जा 485. से णं परो णावागते गावागतं वदेज्जा-आउसंतो! एस णं समणे णावाए भंडभारिए भवति, से गं बाहाए गहाय गावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा। एतप्पगारं निग्धोसं सोच्चा णिसम्म से य चीवरधारी सिया खिप्पामेव चोवराणि उव्वेढेज्ज वा णिवेढेज्ज वा, उप्फेसं वा करेज्जा। ___486. अह पुणेवं जाणेज्जा-अभिकंतकूरकम्मा खलु बाला बाहाहि गहाय गावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा / से पुदामेव वदेज्जा-आउसंतो गाहावती ! मा मेत्तो बाहाए गहाय णावातो उदगंसि पक्खिवह, सयं चेव णं अहं णावातो उदगंसि ओगाहिस्सामि / __ से णेवं ववंतं परो सहसा बलसा बाहाहि गहाय णावातो उदगंसि पक्खिवेज्जा, तं णो मुमणे सिया', णो दुम्मणे सिया, णो उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा, णो तेसि बालाणं घाताए 1. 'पज्जेहि' का तात्पर्य चूणिकार के शब्दों में "दारगं वा दारिगं वा पजहि त्ति, भुंजावेहि धरेहि वा ज्जा, अम्हे णावाए कम्मंकरे।' अर्थात बालक या बालिका को पानी पिलायो. खिलाओ. , पकड़े रखो, ले जाओ, हम नौका पर काम करेंगे। 2. 'परो णावागते गावागतं वदेज्जा' का अर्थ वृत्तिकार के शब्दों में--"नौगतस्तत्स्थं साधुमुद्दिश्यापरमेवं ब्र यात।" अर्थात-"मौका में बैठा हआ व्यक्ति नौका में स्थित साधु को उद्देश्य करके दूसरे नौकारोही से ऐसा कहे....."" 3. भंडभारिए' के स्थान पर 'भंडभारिते' पाठान्तर मानकर चूर्णिकार ने व्याख्या को है- "भडभारिते जहा भंडभारियं ण वा किंचि करेति / " अर्थात्-माण्ड-वस्तुएँ निर्जीव-निश्चेष्ट होने के कारण केवल भारभूत होती हैं, वे कुछ करती नहीं, वैसे ही यह (साधु) है। 4. उन्वेढेज्जा या णिग्वेज्ज वा के स्थान पर पाठान्तर है-"उबेहेज्जवा णिवेज्ज वा', उवट्टे वा निविटिज था।" अर्थ क्रमशः यों है- (1) उपेक्षा करे, निःस्पृह हो जाए, (2) उलट दे, निकाल दे। इन पदों का आशय चूणिकार के शब्दों में देखिए -"थेरा उब्वेति, जिणकप्पितो उप्फैसि करेति / उप्फेसो नाम कुडियंडी सीसकरणं / " अर्थात् स्थविरकल्पिक मुनि कपड़े लपेट लेते है, जिनकल्पिक मुनि उम्फेसीकरण करते हैं। उप्फेस कहते हैं- बोने की तरह सिर को सिकोड़ लेना। 5. 'गो सुमणे सिया' का भावार्थ चूकिार ने दिया है---'मुक्कोमि पंतोबहिस्स'-उस समय मन में अप्रसन्न न हो, इसका आशय यह है कि "साधु मन में यह न सोचे कि चलो, खराब उपधि से छुटकारा मिला, (अब नयी उपधि भक्तों से मिलेगी।") Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org