________________ आचहरांग सूत्र- प्रथम श्रुतस्कन्या तइओ उद्देसओ तृतीय उद्देशक अनगार-लक्षण 19. से बेमि-से जहा वि अणगारे उज्जुकडे णियागपडिवणे' अमायं कुब्बमाणे वियाहिते। 19. मैं कहता हूँ—जिस आचरण से अनगार होता है / जो, ऋजुकृत्-सरल आचरण वाला हो, नियाग-प्रतिपन्न-मोक्ष मार्ग के प्रति एकनिष्ठ होकर चलना हो, नमायकपट रहित हो, विवेचन----प्रस्तुत सूत्र में 'अनगार' के लक्षण बताये हैं / अपने पाप को 'अनगार कहने मात्र से कोई अनगार नहीं हो जाता। जिसमें निम्न तीन लक्षण पाये जाते हों, वही वास्तविक अनगार होता है। (1) ऋजु अर्थात् सरल हो, जिसका मन एवं वाणी कपट रहित हो. तथा जिसकी कथनी-करनी में एकरूपता हो वह ऋजुकृत् है। उत्तराध्ययन सूत्र में बताया है सोही उज्जुभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिठ्ठइ–३।१२ ___-ऋजु आत्मा की शुद्धि होती है। शुद्ध हृदय में धर्म ठहरता है। इसलिए ऋजुता धर्म का-साधुता का मुख्य आधार है। ऋजु अात्मा मोक्ष के प्रति सहज भाव से समर्पित होता है, इसलिए अनगार का दूसरा लक्षण है--(२) नियाग-प्रतिपन्न / उसकी साधना का लक्ष्य भौतिक ऐश्वर्य या यशः प्राप्ति आदि न होकर आत्मा को कर्ममल से मुक्त करना होता है / (3) अमाय-माया का अर्थ संगोपन या छुपाना है, साधना-पथ पर बढ़ने वाला अपनी सम्पूर्ण शक्ति को उसी में लगा देता है / स्व-पर कल्याण के कार्य में वह कभी अपनी शक्ति को छुपाना नहीं, शक्ति भर जुटा रहता है। वह माया रहित होता है / नियाग-प्रतिपन्नता में ज्ञानाचार एवं दर्शनाचार की शुद्धि, ऋजुकृत् में वीर्याचार की तथा अमाय में तपाचार की सम्पूर्ण शुद्धि परिलक्षित होती है / साधना एवं माध्य की शुद्धि का निर्देश इस सूत्र में है। 20. जाए सद्धाए णिक्खंतो तमेव अणुपालिज्जा विजहिता विसोत्तियं / ' (20) जिस श्रद्धा (निष्ठा/वैराग्य भावना) के साथ संयम-पथ पर कदम बढ़ाया है, उसी श्रद्धा के साथ संयम का पालन करे / बिस्त्रोतसिका-अर्थात् लक्ष्य के प्रति शंका व चित्त की चंचलता के प्रवाह में न बहे, शका का त्याग कर दे। 1. चूणिमें-'निकायपडिवण्णे' पाठ है / 2. (क) चुणिमें 'तण्णो हुसि पिसोत्तिय' पाठ है / 3. (ख) विजहिता पुब्यसंजोग ; विजहिता विमोत्तियं ---ऐसा पाठान्तर भी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org