________________ 176 आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रु तस्कन्ध 472. से भिक्खू वा 2 गामाणुगामं दूइज्जमाणे, अंतरा से अरायाणि वा जुवरायाणि या दोरज्जाणि वा वेरज्जाणि वा विरुद्धरज्जाणि बा, सति लाढे विहाराए संथरमाणेहि जणवह जो विहारवत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए / केवली बूया-आयाणमेतं / ते गं बाला अयं तेणे तं चेव जाव' गमणाए / ततो संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा। 473. से भिक्खू वा 2 गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से विहं सिया, से ज्जं पुण विहं जाणेज्जा-एगाहेण वा दुयाहेण वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा पाउणज्जा वा णो' वा पाउणेज्जा। तहप्पगारं विहं अणेगाहगणिज्जं सति लाढे जाव' गमणाए / केवलो बूया-- आयाणमेतं / अंतरा से वासे सिया पाणेसु वा पणएसु वा बीएसु वा हरिएसु वा उदएसु वा मट्टियाए वा अविद्धत्थाए / अह भिक्खूणं पुन्वोवदिट्ठा 4 जं तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिज्जं जाव णो गमणाए / ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। 466. साधु या साध्वी एक ग्राम से दूसरे ग्राम विहार करते हुए अपने सामने की यगमात्र (गाड़ी के जुए के बराबर चार हाथ प्रमाण) भूमि को देखते हुए चले, और मार्ग में प्रसजीवों को देखें तो पैर के अग्रभाग को उठा कर चले / यदि दोनों ओर जीव हों तो पैरों को सिकोड़ कर चले अथवा पैरों को तिरछे-टेढे रखकर चले। (यह विधि अन्य मार्ग के अभाव में बताई गई है) यदि दूसरा कोई साफ मार्ग हो, तो उसी मार्ग से यतनापूर्वक जाए, किन्तु जीवजन्तुओं से युक्त सरल (सीधे) मार्ग से न जाए। (निष्कर्ष यह है कि) उसी (जीव-जन्तु रहित) मार्ग से यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विचरण करना चाहिए। 470. साधु या साध्वी प्रामानुग्राम विचरण करते हुए यह जानें कि मार्ग में बहुत से त्रस प्राणी हैं, बीज बिखरे हैं, हरियाली है, सचित्त पानी है या सचित्त मिट्टी है, जिसकी योनि विध्वस्त नहीं हुई हैं, ऐसी स्थिति में दूसरा निर्दोष मार्ग हो तो साधु साध्वी उसी मार्ग ने यतनापूर्वक जाएँ, किन्तु उस (जीवजन्तु आदि से युक्त) सरल (सीधे) मार्ग से न जाए / (निष्कर्ष यह है कि) उसी (जीवजन्तु आदि से रहित) मार्ग से साधु साध्वी को ग्रामानुग्राम विचरण करना चाहिए। 471. प्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में विभिन्न देशों की सीमा पर रहने वाले दस्युओं के, म्लेच्छों के या अनार्यों के स्थान मिलें, तथा जिन्हें बड़ी कठि 1. यहाँ जाव शब्द से अयं तेने से लेकर गमणाए तक का पाठ सूत्र 471 के अनुसार समझें। 2. गोवा पाउणेज्जा के स्थान पर पाठान्तर है-- नो पाउणज्ज वा, नो वा पाउणेज्ज वा। 3. यहाँ जाव शब्द से लाढ़े से लेकर गमणाए तक का पाठ सू० 472 के अनुसार समझें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org