________________ 170 आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध है, जो (1) आलम्बन, (2) काल, (3) मार्ग, (4) यतना---इन चारों के विचारपूर्वक गमन से होती है / यही ईर्या-अध्ययन का उद्देश्य है।' + ईर्या-अध्ययन के तीन उद्देशक हैं / प्रथम उद्देशक में वर्षा काल में एक स्थान में निवास, तथा ऋतुबद्धकाल में विहार के गुण-दोषों का निरूपण है। - द्वितीय उद्देशक में नौकारोहण-यतना, थोड़े पानी में चलने की यतना तथा अन्य ईर्या से सम्बन्धित वर्णन है। 1 तृतीय उद्देशक में मार्ग में गमन के समय घटित होने वाली समस्याओं के सम्बन्ध में उचित मार्ग-दर्शन प्रतिपादित है। - सूत्र 464 से प्रारम्भ होकर सूत्र 516 पर तृतीय ईर्याध्ययन समाप्त होता है / 1. (क) आचा. टीका पत्र 374 / (ख) उत्तराध्ययन अ० 24, गा० 4, 5, 6, 7, 8 / 2. (क) आचारांग नियुक्ति गा० 311, 312 / (ख) टीका पत्र 375 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org