________________ आचारांग सूत्र--द्वितीय श्रु तस्कन्ध [1] तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा से भिक्खूवा भिक्खुणी वा उद्दिसिय 2 संथारगं जाएज्जा, तंजहा-इक्कडं वा कढिपं वा जंतुयं वा परगं वा मोरगं वा तणगं वा कुसं वा वव्वर्ग' वा पलालगं वा / से पुवामेव आलोएज्जा--आउसो ति वा भगिणी ति वा वाहिसि मे एत्तो अण्णतरं संथारगं ? तहप्पगारं संथारगं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा, फासुयं एसणिज्जं जाव लाभे संते पडिगाहेज्जा / पढमा पडिमा। [2] अहावरा दोच्चा पडिमा-से भिक्खू वा 2 पेहाए संथारगं जाएज्जा, तंजहा.गाहाति वा जाव कम्मकार वा / से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ति वा भगिणी ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णतरं संथारगं ? तहप्पगारं संथारगं सयं वा गं जाएज्जा' जाव पडिगाहेज्जा / दोच्चा पडिमा। [3] अहावरा तच्चा पडिमा से भिक्खु वा 2 जस्सुवस्सए संवसेज्जा जे तत्थ अहासमण्णागते, तंजहा--इक्कडे वा जाव पलाले वा, तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए वा सज्जिए वा विहरेज्जा / तच्चा पडिमा। [4] अहावरा चउत्था पडिमा से भिक्खू वा 2 अहासंथडमेव संथारगं जाएज्जा / तंजहा-पुढविसिलं वा कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव, तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए वा सज्जिए वा विहरेज्जा / चउत्था पडिमा / 457. इच्चेताणं चउण्हं पडिमाणं अण्णतरं पडिमं पडिवज्जमाणे जाव' अण्णोण्णसमाहोए एवं च णं विहरति / सू. 456. इन दोषों (वसतिगत एवं संस्तारकगत) के आयतनों (स्थानों) को छोड़कर साधु इन चार प्रतिमाओं (प्रतिज्ञाओं) गे संस्तारक की एषणा करना जान ले (1) इन चारों में से पहली प्रतिमा यह है--साधु या साध्वी अपने संस्तरण के लिए आवश्यक और योग्य वस्तुओं का नामोल्लेख कर-कर के संस्तारक की याचना करे, जैसे इक्कड नामक तृण विशेष, कढिणक नामक तृण विशेष, जंतुक नामक तृण, परक (मुडंक) नामक घास, मोरंग नामक घास (या मोर की पांखों से बना हुआ), सभी प्रकार का तृण, कुश, कुर्चक, वर्वक नामक तण विशेष, या पराल आदि / साधु पहले से ही इक्कड आदि किसी भी प्रकार 1. वम्वगं के स्थान पर पाठान्तर हैं-पप्पलगं, पिप्पलगं पप्पगं आदि / अर्थ समान है। 2. यहाँ जाव शब्द एसणिज्जं से लाभे संते के बीच में मण्णमाणे पाठ का सूचक है। 3. यहाँ जाव शब्द से जाएज्जा से लेकर पडिग्गाहेज्जा तक समग्न पाठ सू० 336 के अनुसार समझ / 4. तस्स अलाभे के पाठान्तर हैं = तस्सालाभे, तस्स अलाभे / अर्थ समान हैं। 5. यहाँ जाव शब्द से पडिवज्जमाणे से लेकर अण्णोण्णसमाहीए तक का समग्र पाठ सूत्र 410 के अनुसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org