________________ द्वितीय अध्ययन : तृतीय उद्देशक : सूत्र 404 151 वा लट्ठिया वा भिसिया वा णालिया वा चेले वा चिलिमिली वा चम्मए वा चम्मकोसए वा चम्मच्छेदणए वा दुबद्ध दुणिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले, भिक्खू य रातो वा वियाले वा णिक्खममाणे वा पविसमाणे वा पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा पायं वा जाव इंदियजातं वा लूसेज्ज वा पाणाणि वा 4 अभिहणेज्ज वा जाव ववरोवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुवोदिट्ठा 4 जं तहप्पगारे उवस्सए पुराहत्येण पच्छापादेण ततो संजयामेव णिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा / 444. वह साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, जो छोटा है, या छोटे द्वारों वाला है, तथा नीचा है, या नित्य जिसके द्वार बन्द रहते हैं, तथा चरक आदि परिबाजकों से भरा हआ है। इस प्रकार के उपाश्रय में (कदाचित् किसी कारणवश साधु को ठहरना पड़े तो) वह रात्रि में या विकाल में भीतर से बाहर निकलता हुआ या बाहर से भीतर प्रवेश करता हआ पहले हाथ से टटोल ले, फिर पैरो संयम (यतना) पूर्वक निकले या प्रवेश करे। केवली भगवान् कहते हैं—(अन्यथा) यह कर्मबन्ध का कारण है, क्योंकि वहाँ पर शाक्य आदि श्रमणों के या ब्राह्मणों के जो छत्र, पात्र, दंड, लाठी, ऋषि-आसन (वृषिका), नालिका (एक प्रकार की लम्बी लाठी या घटिका), वस्त्र, चिलिमिली (यवनिका, पर्दा या मच्छरदानी) मृगचर्म, चर्मकोश, (चमड़े की थैली) या चर्म-छेदनक (चमड़े का पट्टा) हैं, वे अच्छी तरह से बंधे हुए नहीं हैं, अस्त-व्यस्त रखे हुए हैं, अस्थिर (हिलने वाले हैं, कुछ अधिक चंचल है, (उनकी हानि होने का डर है)। रात्रि में या विकाल में अन्दर से बाहर या बाहर गे अन्दर (अयतना से) निकलता-घुसता हुआ साधु यदि फिसल पड़े या गिर पड़े (तो उनके उक्त उपकरण टूट जाएंगे) अथवा उस साधु को फिसलने या गिर पड़ने से उसके हाथ, पैर सिर या अन्य इन्द्रियों (अंगोंपांगो) के चोट लग सकती है या वे टूट सकते हैं, अथवा प्राणी, भूत, जीव और सत्वों को आघात लगेगा, वे दब जाएंगे यावत् वे प्राण रहित हो जाएंगे। इसलिए तीर्थंकर आदि आप्तपुरुषों ने पहले ये ग्रह प्रतिज्ञा बताई है, यह हेतु, कारण और उपदेश दिया है कि इस प्रकार के (संकड़े छोटे और अन्धकारयुक्त) उपाश्रय में रात को या विकाल में पहले हाथ से टटोल कर फिर पैर रखना चाहिए, तथा यतनापूर्वक भीतर से बाहर या बाहर से भीतर गमनागमन करना चाहिए / चम्मए मृगचर्म अथवा चमड़े के जते / चम्मकोसओ-चमड़े का थैला, खनीता या चमडे का मौजा, चम्मच्छेदणए चमड़े का वस्त्र/पट्टा / / 1. चमच्छेदनक-एक प्रकार का चर्म डोरा, जो दो वस्त्र खण्ड को जोड़ने के काम में आता था। देखें--चम्मपरिच्छेयणग-वधं नद विछिन्नसंधानार्थ अथवा द्विखण्ड-संधानहों घ्रियते—व्यवहार सूत्र उ० = वृत्ति (अभिः भाग 3. पृ० 1123) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org