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________________ 135 द्वितीय अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र 431 चेतावनी दी है / चूर्णिकार ने इन सूत्रों का रहस्य अच्छे ढंग से समझाया ___ 'सुईसमाचारा' आदि पदों के अर्थ -सुईसमाचारा-शौचाचारपरायण भागवतादि भक्त या बनठन कर (इत्र-तेल, फुलेल आदि लगाए) रहने वाले सफेदपोश, पडिलोमे-विद्वेषी, दुवारबाहं == द्वारभाग को, अवंगुणेज्जा खोलेगा, उल्लियति-छिपता है, आपतति =नीचे कूद रहा है। उपाश्रय-एषणा : विधि-निषेध 431. से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा, तं [जहा - ] तणयुंजेसु वा पलालपुंजेसु वा सअंडे जाव संताणए / तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा सेज वा णिसोहियं वा चेतेज्जा / से भिक्खू वा 2 से ज्ज पुण उवस्मयं जाणेज्जा तगपुंजेसु वा पलालपुंजेसु वा अप्पंडे जाव चेतेज्जा। 431. जो साधु या साध्वी उपाश्रय के सम्बन्ध में यह जाने कि उसमें (रखे हुए) घास के ढेर या पुआल के ढेर, अंडे, बीज, हरियाली, ओस, सचित्त जल, कोड़ी नगर, काई, लीलणफूलण, गीली मिट्टी, या मकड़ी के जालों से युक्त है तो इस प्रकार के उपाश्रय में वह स्थान, शयन आदि कार्य न करे / यदि वह साधु या साध्वी ऐसा उपाश्रय जाने कि उसमें (रखे हुए) घास के ढेर या पुआल के ढेर, अंडों, बीजों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त नहीं है तो इस प्रकार के उपाश्रय में वह स्थान-शयनादि कार्य करे।। विवेचन—जीव जन्तु संहक्त उपाश्रय वजित, जीव-रहित नही-साधु अपने निमित्त में किसी भी जीव को हानि पहुंचाना नहीं चाहता। उसकी अहिंसा की पराकाष्ठा है–समस्त जीवों को अपनी आत्मा के समान समझना / ऐसी स्थिति में वह अपने निवास के लिए जो स्थान 1. टीका पत्र 364 के आधार पर। 2. आचारांग चूणि, देखिए मूल पाठ टिप्पण / 3. टीका पत्र 364 / 4. तणपुंजेसु पलालपु जेसु की व्याख्या चूणिकार के शब्दों में तणपुजा गिहाणं उरि तणा कया, पलाल वा मंडपस्स उरि हेट्ठा भूमी रमणिज्जा, सअंहिं णो ठाणं चेतिज्जा, अप्पंडेहि चेतिज्जा। अर्थात् -तृण का देर तृणपुज कहलाता है, जो कि घरों पर किया जाता है, अथवा मंडप पर पराल बिछाई जाती है। अत: नीचे की भूमि रमणीय है, किन्तु वह अंडों या जीवजन्तु से युक्त है तो स्थान (निवास) न करे / जो अंडे आदि से रहित स्थान हो, वहीं निवास करे। 5. सअंडे के बाद जाव शब्द सअंडे से लेकर संताणए तक का पाठ सत्र 356 के अनसार समा 6. अप्पंडे के बाद 'जाव' शब्द चैतेज्जा नक के पाठ का सूचक है, सू० 324 के अनुसार / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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