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________________ बीयं अज्झयणं 'सेज्जा' पढमो उद्देसओ शवणा : द्वितीय अध्ययन : प्रथम उद्देशक उपाश्रय-एषणा [प्रथम विवेक] __412. से भिक्खू वा 2 अभिकखेज्जा उवस्सयं एसित्तए, अणुपविसित्ता गाम वा णगरं वा जाव' रायहाणि वा से ज्ज पुण उवस्मयं जाणेज्जा सअंडं सपाणं जाव' संताणयं, तहप्पगारे उवस्सए को ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेज्जा। से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा अप्पंडं जाव संताणगं, तहप्पगारे उवस्सए पिडलेहित्ता पमज्जित्ता ततो संजयामेव ठाणं वा 3 चेतेज्जा / 412. साधु या साध्वी उपाश्रय की गवेषणा करना चाहे तो ग्राम या नगर यावत् राजधानी में प्रवेश करके साधु के योग्य उपाश्रय का अन्वेषण करते हुए यदि यह जाने कि वह उपाश्रय अंडों से यावत् मकड़ी के जालों से युक्त है तो वैसे उपाश्रय में वह साधु या साध्वी स्थान (कायोत्सर्ग), शय्या (संस्तारक) और निषोधिका (स्वाध्याय) न करे। वह साधु या साध्वी जिस उपाश्रय को अंडों यावत् मकड़ी के जाले आदि से रहित जाने; वैसे उपाश्रय का यतनापूर्वक प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके उसमें कायोत्सर्ग, संस्तारक एवं स्वाध्याय करे। विवेचन--उपाश्रय-निर्वाचन में प्रथम विवेक-प्रस्तुत सूत्र में उपाश्रय की एषणा विधि बतलाई गई है / 'उपाश्रय' शब्द यहाँ साधु के निमित्त सुरक्षित रखे हुए स्थान का नाम नहीं है, अपितु गृहस्थ द्वारा अपने उपयोग के लिए बनाये हुए स्थान विशेष का नाम है / प्राचीन काल में साधु जिस स्थान को भलीभांति देखभाल कर तथा निर्दोष और जीव-जन्तु-रहित स्थान जानकर चुन लेता था, गृहस्थ द्वारा उसमें ठहरने की अनुमति दे देने पर ठहर जाता था, तब वह अपने समझने या लोगों को समझाने भर के लिए उसे 'उपाश्रय संज्ञा दे देता था, किन्तु जब साधु वहां से अन्यत्र विहार कर जाता था, उसका उपाश्रय नाम मिट जाता था। 1. यहाँ जाव शब्द से 'गरं वा' से लेकर रायहाणि तक समग्र पाठ सू० 338 के अनुसार समझें। 2. यहाँ जाब शब्द से सपाणं से लेकर संतापयं तक समग्र पाठ सू० 324 के अनुसार समझें। 3. यहां ठाणं वा के बाद '3' का चिन्ह सेज्ज वा मिसीहियं वा पाठ का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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