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________________ माचाररांग सूत्र-प्रथम उद्देशक इसलिए लोक को मानने वाला कर्म को भी मानेगा तथा कर्मबन्ध का कारण है-किया. अर्थात् शुभाशुभ योगों की प्रवृत्ति / इस प्रकार आत्मा का सम्यक् परिज्ञान हो जाने पर लोक का, कर्म का, किया का परिज्ञान भी हो जाता है। अतः वह प्रात्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी और क्रियावादी भी है। आगे के सूत्रों में हिंसा-अहिंसा का विवेचन किया जायेगा / अहिंसा का आधार अात्मा है। आत्म-बोध होने पर ही अहिंसा व संयम को साधना हो सकती है। अतः अहिंसा की पृष्ठभूमि के रूप में यहाँ आत्मा का वर्णन किया गया है। आत्रव-संवर-बोध 4. अकरिस्सं च है, काराविस्संच है, करओ यावि समणणे भविस्सामि / 5. एयाति सव्वाति लोगंसि कामसमारंभा परिजाणियदा भनेति / . 4. (वह आत्मवादी मनुष्य यह जानता/मानता है कि)___ मैंने क्रिया की थी। मैं क्रिया करवाता हूँ। मैं क्रिया करने वाले का भी अनुमोदन करूंगा। 5. लोक-संसार में ये सव क्रियाएँ कर्म-समारंभ-(हिसा की हेतुभूत) हैं, अतः ये सब जानने तथा त्यागने योग्य हैं / विवेचन–चतुर्थ सूत्र में क्रिया के भेद-प्रभेद का दिग्दर्शन कराया गया है। क्रिया कर्मबन्ध का कारण है, कर्म से आत्मा संसार में परिभ्रमरण करता है। अत: संसारभ्रमरण से मुक्ति पाने के लिए क्रिया का स्वरूप जानना और उसका त्याग करना नितांत अावश्यक है। मैंने क्रिया की थी, इस पद में अतीतकाल के नौ भेदों का संकलन किया है—जैसे, क्रिया की थी, करवाई थी, करते हुए का अनुमोदन किया था, मन से, वचन से, कर्म से। इसी प्रकार वर्तमानपद 'करवाता हूँ' में भी करता हूँ, करवाता हूँ, करते हुए का अनुमोदन करता हूँ, तथा भविष्यपद क्रिया करूगा, करवाऊँगा, करते हुए का अनुमोदन करूंगा, मन से, वचन से, कर्म से, ये नव-नव भंग बनाये जा सकते हैं। इस प्रकार तीन काल के, क्रिया के 27 विकल्प हो जाते हैं। ये 27 विकल्प ही कर्म-समारंभ/हिंसा के निमित्त हैं, इन्हें मम्यक प्रकार से जान लेने पर क्रिया का स्वरूप जान लिया जाता है।' क्रिया का स्वरूप जान लेने पर ही उसका त्याग किया जा सकता है। क्रिया संसार का कारण है, और प्रक्रिया मोक्ष का / अकिरिया सिद्धी-पागम-वचन का भाव यही है कि क्रिया/पाश्रव का निरोध होने पर ही मोक्ष होता है। 1. प्राचारांग शीलांक टीका पत्रांक 21 2. भगवती सूत्र 2 / 5 सूत्र 111 (अंगसुत्तारिण) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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