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________________ प्रथम अध्ययन: नवम उद्देशक : सूत्र 360-62 णवमो उद्देसओ नवम उद्देशक आधार्मिक आदि ग्रहण-निषेध 390. इह खलु पाईणं वा पडीणं वा दाहिणं वा उदोणं वा संगतिया सड्ढा भवंति गाहावती वा जाव' कम्मकरी वा / तेसि च णं एवं वृत्तपुव्वं भवति-जे इमे भवंति समणा भगवंतो सोलमंता वयमंता गुणमंता संजता संवुडा बंभचारी उवरया मेहणातो धम्मातो जो खलु एतेंसि कप्पति आधाकम्मिए असणे वा पाणे वा खाइमे वा साइने वा भोत्तए वा पातए वा / से ज्जं पुण इमं अम्हं अप्पणो अटाए णिद्वितं, तंजहा-असणं वा 4, सव्वमेयं समणाणं णिसिरामो, अधियाई क्यं पच्छा वि अप्पणो सयट्ठाए असणं वा 4 चेतिस्सामो / एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म तहप्पगारं असणं वा 4 अफासुयं अणेसणिज्ज जाव लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। 361. से भिक्खू वा 2 जाव' समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं वा दूइज्जमाणे, से ज्जं पुण जाणेज्जा गामं वा जाव रायहाणि वा इमंसि खलु गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा संगतियस्स भिक्खुस्स पुरेसंथुया वा पच्छासंथुया वा परिवसंति, तंजहा—गाहावतो वा जाप कम्मकरो वा / तहप्पगाराइं कुलाई को पुव्यामेव भत्ताए वा पाणाए वा णिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा। केवली बूया-आयाणमेयं / पुरा पेहा एतस्स परो अट्ठाए असणं वा 4 उवकरेज्ज वा उपक्खडेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवविट्ठा 4 जं जो तहप्पगाराई कुलाई पुष्यामेव भत्ताए वा पाणाए वा पविसेज्ज वा णिक्खमेज्ज वा। से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमित्ता अणावायमसंलोए चिट्ठज्जा, से तत्थ 1. यहां जाव शब्द से गाहावती से लेकर कम्मकरी तक का समग्र पाठ सु० 347 के अनुसार समझें।। जाव शब्द से यहाँ गाहावइकुल से लेकर समाणे तक का पाठ सू० 324 के अनुसार समझें / 3. 'समाणे बसमाणे' के सम्बन्ध में णिकार कहते हैं-समाणावी-पुथ्वमणिता-'समान' आदि के सम्बन्ध में पहले कहा जा चुका है देखें सूत्र 350 पृष्ठ 45 का टिप्पण 3 / / 4. यहाँ जाव शब्द से गामंसि वा से लेकर रायहाणिसि तक का सारा पाठ सू०३३८ के अनुसार समझें / उपकरेज्ज वा उवक्खडेज्ज वा के स्थान पर उक्करेज्ज वा उवक्खडेज्ज वा पाठ मानकर चर्णिकार इन दोनों क्रियाओं का अर्थ इस प्रकार करते हैं-उपकरेति परिवच्छेति, उवक्खडेति रंधेति / अर्थात् उक्करेति-सब ओर से सामग्री एकत्रित करता है, उवक्खडेति-पकाता है। 6. पुवोवविठ्ठा के बाद '4' का चिन्ह सू० 357 के अनुसार एस पतिण्णा आदि चार बातों का सूचक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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