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________________ 86 प्रथम अध्यपन : अष्टम उद्देशक : सूत्र 375-88 के प्रलम्ब फल (4) विविध वृक्षों के प्रवाल, (5) कपित्थ आदि के कोमल फल, (6) गुल्लर, बड़, पीपल आदि का मंयु (चूर्ण), (7) जलज वनस्पतियां, (8) पद्म आदि कन्द के मूल आदि () अग्र-मूल-स्कन्ध-पर्व-बीजोत्पन्न वनस्पतियां, (10) ईख, बेंत आदि की विकृति (11) लहसुन और उसके सभी अवयव, (12) आस्थिक आदि वृक्षों के फल, (13) बीज रूप वनस्पति और तन्निमित आहार, (14) अधपको पत्तों की भाजी, सड़ी खली, तथा विकृत गोरस जनित आहार / ' उत्तराध्ययन सूत्र (अ-३६) में वनस्पतिकाय के मुख्यतया दो भेद बताए हैं(१) साधारण और (2) प्रत्येक / साधारण वनस्पति में शरीर एक होता है, तथा प्राण-आत्माएं अनेक होती हैं, जैसे कन्द, मूल, आलू, अदरक, लहसुन, हलदी आदि। प्रत्येक शरीरवाली वनस्पति (जिसके एक शरीर में आत्मा भी एक ही होती है) वृक्ष, गुल्म, गुच्छ, लता, वल्ली, तृण, वलय पर्व, कुहुण, जलरूह, औषधि (गेहूं आदि अन्न), तने, हरित (हरियाली दूब आदि) अनेक प्रकार की होती है। यहां जितनी भी वनस्पतियों का निर्देश किया है, वे जब तक हरी, या कच्ची होती हैं, किसी स्व-काय, पर-काय या उभय-काय शस्त्र से परिणत नहीं होती, या फल के रूप में परिपक्व नहीं होती, तब तक अप्रासुक (सचित्त) और अनेषणीय मानी जाती हैं; वे साधु के लिए ग्राह्य नहीं होती। सालुमं आदि पदों के अर्थ-शालूक आदि अपक्वरूप में खाए जाते हैं, इसलिए इनके ग्रहण का निषेध किया गया है। सासुयं-उत्पल-कमल का कन्द (जड़)। यह जलज कन्द होता है / विरालियं --पलाशकन्द, विदारिका का कन्द। यह कन्द स्थलज और पत्ते से उत्पन्न होता है। सासवनालियं-सर्षप (सरसों) की नाल / पिप्पलिन्:कच्ची हरी पीपर। पिप्पल चुण्णं --हरी पीपर को पीस कर उसकी चटनी बनाई जाती है, या उसे कूट कर चूर-चूर किया जाता है, उसे पीपर का चूर्ण कहते हैं। मिरियं-काली या हरी कच्ची मिर्च / सिगबेरं-कच्चा अदरक / सिंगबेरचण्णं कच्चे अदरक को कूट पीस कर चटनी बनाई जाती है। पलंबलम्बा लटकनेवाला फल। पवाल-नवांकुर या किसलय नया कोमल पत्ता। सरडय = 1. आचारांग वृत्ति के आधार पर पत्रांक 347-348 / 2. उत्तराध्ययन सूत्र अ० 36 गा० 64 से 100 तक / 3. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक 347, (ख) दशव० 5/2/18 हारि० टीका 50 185 / 4. दशव० 5/2/18 जिन० चूणि पृ० 197 / 5. आचारांग वृत्ति पत्रांक 347 / 6. पाइअ सद्द महण्णवो पृ० 566 / 7. पाइअ सद्दमहण्णवो पृ० 575 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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