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________________ प्रथम अध्ययन : पंचम उद्देशक: सूत्र 357 55 पूर्व-प्रविष्ट श्रमण-माहनादि की उपस्थिति में भिक्षा विधि 357. से भिक्खू वा 2 जाव' समाणे से ज्ज पुण जाणेज्जा, समणं वा माहणं वा गामपिंडोलगं बा अतिहि वा पुव्वपविट्ठ पेहाए णो तेसि संलोए सपडिदुवारे चिट्ठज्जा। ___केवली' बूया -आयाणमेय। पुरा पेहा एतस्सट्टाए परो असणं वा 4 आहट्ट दलएज्जा / अह भिक्खूणं पुन्वोवदिट्ठा एस पतिण्णा, एस हेतु, एस उवएसे-जं णो तेसि संलोए सपडिदुवारे चिट्ठिज्जा। से त्तमादाए एगंतमवक्कमज्जा, 2 [त्ता। अणावायमसंलोए चिट्ठज्जा / से से परो अणावातमसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा 4 आहटु दलएज्जा, से सेवं वदेज्जा-आउसंतो समणा! इमे भे असणे वा 4 सब्जजणाए णिस?, तं भुजह व णं परिभाएह व णं / तं चेगतिओ पडिगाहेत्ता तुसिणीओ उवेहेज्जा-अवियाई एयं ममामेव सिया। माइद्वाणं संफासे / णो एवं करेज्जा। से तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, 2 [त्ता] से पुवामेव आलोएज्जा आउसंतो समणा ! इमे भे असणे वा 4 सव्वजणाए णिस?। तं भुंजह व णं परियाभाएह व णं / से णमेवं वदंतं परो वदेज्जा-आउसंतो समणा ! तुमं चेव णं परिभाएहि। से तत्थ परिभाएमाणे णो अप्पणो खद्ध 22 डायं 2 ऊसढं 2 रसियं 2 मणुण्णं 2 णिद्ध२ लुक्खं 2 / से तत्थ अमुच्छिए अगिद्ध अगढिए अणझोषवण्णे बहुसममेव परिभाएज्जा। से णं परिभाएमाणं परो वदेज्जा-आउसंतो समणा ! मा णं तुमं परिभाएहि, सव्वे वेगतिया भोक्खामो वा पाहामो वा। से तत्थ भुंजमाणे णो अपणो खद्ध खद्ध जाव लुक्खं / से तस्थ अमुच्छिए 4 बहुसममेव भुंजेज्ज वा पाएज्ज वा। 1. यहाँ 'जाव' शब्द सूत्र 324 के अन्तर्गत समग्र पाठ का सूचक हैं। 2. यह पाठ वृत्ति आदि कई प्रतियों में नहीं हैं। 3. जहाँ '4' का चिन्ह हो वहाँ वह शेष तीनों आहारों का सूचक है। 4. इसके स्थान पर पाठान्तर है-परियाभाएध, परि ड) यामाएह आदि , अर्थ समान है। 5. गच्छेज्जा के बाद '2' का चिन्ह मच्छ धातु की पूर्वकालिका क्रिया-पद 'गच्छित्ता' का बोधक है। हाँ से लुक्खं तक जो 2' का चिन्ह है, वह प्रत्येक शब्द से संयुक्त है, वह हरेक शब्द की पुनरावृत्ति का सूचक है। 7. इसके स्थान पर पाठान्तर है-'सम एव परियाभाएज्जा' से गं परियाभाएज्जा परिभाएज्जा से गं' अर्थात् बह उन्हें सम विभाग करे / 8. इसके स्थान पर पाठान्तर मिलता है.--'वेमओ ठिया भोक्खामो-एक जगह बैठ कर भोजन करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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