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________________ प्रथम अध्ययन : चतुर्थ उद्देशक : सूत्र 346-350 45 रहा है, अभी तक उसमें से किसी दूसरे को दिया नहीं गया है। ऐसा जानकर आहार प्राप्ति की दृष्टि से न तो उपाश्रय से निकले और न ही उस गृहस्थ के घर में प्रवेश करे। किन्तु (गृहस्थ के यहाँ प्रविष्ट होने पर गोदोहनादि को जान जाए तो) वह भिक्षु उसे जानकर एकान्त में चला जाए और जहाँ कोई आता-जाता न हो, और न देखता हो, वहाँ ठहर जाए / जब वह यह जान ले कि दुधारू गायें दुही जा चुकी हैं और अशनादि चतुर्विध आहार भी अब तैयार हो गया है, तथा उसमें से दूसरों को दे दिया गया है, तब वह संयमी साधु--आहार प्राप्ति की दृष्टि से वहां से निकले या उस गृहस्थ के घर में प्रवेश करे। विवेचन आहार के लिए प्रवेश निषिद्ध कब कब विहित ?–इस सूत्र में गृहस्थ के घर में तीन कारण विद्यमान हों तो आहारार्थ प्रवेश के लिए निषेध किया गया है--- (1) गृहस्थ के यहां गायें दुही जा रही हों, (2) आहार तैयार न हुआ हो, (3) किसी दूसरे को उसमें से दिया न गया हो। अगर ये तीनों बाधक कारण न हो तो साधु आहार के लिए उस घर में प्रवेश कर सकता है, वहाँ से निकल भी सकता है। गृह प्रवेश में निषेध के जो तीन कारण बताए हैं, उनका रहस्य वृत्तिकार बताते हैंगायें दुहते समय यदि साधु गृहस्थ के यहां जाएगा तो उसे देखकर गायें भड़क सकती हैं, कोइ भद्र श्रद्धालु गृहस्थ साधु को देखकर बछड़े को स्तन-पान करता छुड़ाकर साधु को शीघ्र दूध देने की दृष्टि से जल्दी-जल्दी गायों को दुहने लगेगा, गायों को भी प्रास देगा, बछड़ों के भी दूध पीने में अन्तराय लगेगा। अधपके भात को अधिक ईधन झौंक कर जल्दी पकाने का प्रयत्न करेगा, भोजन तैयार न देखकर साधु के वापस लौट जाने से गृहस्थ के मन में संक्लेश होगा, वह साधु के लिए अलग से जल्दी-जल्दी भोजन तैयार कराएगा, तथा दूसरों को न देकर अधिकांश भोजन साध को दे देगा तो दूसरे याचकों या परिवार के अन्य सदस्यों को अन्तराय होगा।' अगर कोइ साधु अनजाने में सहसा गृहस्थ के यहां पहुंचा और उसे उक्त बाधक कारणों का पता लगे, तो इसके लिए विधि बताई गई है कि वह साधु एकान्त में, जन-शून्य व आवागमन रहित स्थान में जाकर ठहर जाए; जब गायें दुही जा चुके, भोजन तैयार हो जाए, तभी उस घर में प्रवेश करे। अतिथि-श्रमण आने पर भिक्षा विधि 350. भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु समाणा' वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे 1. टीका पत्र 335 / 2. टीका पत्र 335 / 3. चणि में इसके स्थान पर पाठान्तर है-'सामाणा वा यसमाणा वा गामाणुगामं बुइज्जमाणे / अर्थ एक-सा है। चूणिकार ने इस सूत्र-पंक्ति की व्याख्या इस प्रकार की है--"भिक्खणसोला भिक्खागा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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