________________ 38 आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रु तस्कन्ध 344. [1] जो भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होना चाहता है, वह अपने सब धर्मोपकरण (साथ में) लेकर आहार प्राप्ति के उद्देश्य से गृहस्थ के घर में प्रवेश करे या निकले। [2] साधु या साध्वी बाहर मलोत्सर्गभूमि या स्वाध्यायभूमि में निकलते या प्रवेश करते समय अपने सभी धर्मोपकरण लेकर वहां से निकले या प्रवेश करे। [3] एक ग्राम से दूसरे ग्राम विचरण करते समय साधु या साध्वी अपने सब धर्मोपकरण साथ में लेकर ग्रामानुग्राम विहार करे। 345. यदि वह भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि बहुत बड़े क्षेत्र में वर्षा वरसती दिखायी देती है, विशाल प्रदेश में अन्धकार रूप धुंध (ओस या कोहरा) पड़ती दिखायी दे रही है, अथवा महावायु (आंधी या अंधड़) से धूल उड़ती दिखायी देती है, तिरछे उड़ने वाले या अस प्राणी एक साथ बहुत-से मिलकर गिरते दिखाई दे रहे हैं। तो वह ऐसा जानकर सब धर्मोपकरण साथ में लेकर आहार के निमित्त गृहस्थ के घर में न तो प्रवेश करे और न वहाँ से निकले / इसी प्रकार (ऐसी स्थिति में) बाहर विहार (मलोत्सर्ग-) भूमि या विचार (स्वाध्याय.) भूमि में भी निष्क्रमण या प्रवेश न करे; न ही एक ग्राम से दूसरे ग्राम को विहार करे / विवेचन-जिनकल्पी आदि मिनु का आधार-ये दोनों सूत्र गच्छ-निर्गत विशिष्ट साधना करने वाले जिनकल्पिक आदि भिक्षुओं के कल्प (आचार) की दृष्टि से हैं, ऐसा वृत्तिकार का कथन है। जिनकल्पिक दो प्रकार के है-छिद्रपाणि और अच्छिद्रपाणि / अच्छिद्रपाणि जिनकल्पी यथाशक्ति अनेक प्रकार के अभिग्रह विशेष के कारण दो प्रकार के उपकरण रखते हैं (1) रजोहरण और (2) मुखवस्त्रिका / कोई-कोई तीसरा प्रच्छादन पट भी ग्रहण करते हैं, इस कारण तीन, कई ओस की बूंदों व परिताप से रक्षार्थ ऊनी कपड़ा भी रखते हैं, इस कारण चार, कोई असहिष्णु भिक्षु दूसरा सूती वस्त्र भी लेते हैं, इस कारण उनके पांच धर्मोपकरण होते हैं। ___छिद्रपाणि जिनकल्पी के पात्रनिर्योग सहित सात प्रकार के, रजोहरण मुखवस्त्रिकादि ग्रहण के क्रम से नौ, दस, ग्यारह या बारह प्रकार के उपकरण होते हैं / दोनों प्रकार के जिनकल्पिक के लिए शास्त्रीय विधान है कि वह आहार, विहार, निहार और विचार (स्वाध्याय) के लिए जाते समय अपने सभी धर्मोपकरणों को साथ लेकर जाए, क्योंकि वह प्रायः एकाकी होता है, दूसरे साधु से भी प्रायः सेवा नहीं लेता, स्वाश्रयी होता है। इसलिए अपने सीमित उपकरणों को पीछे किसके भरोसे छोड़ जाए ?' किन्तु मूसलधार वर्षा दूर-दूर तक बरस रही हो, धुंध पड़ रही हो, आंधी चल रही 1. टीका पत्र 332 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org