________________ प्रथम अध्ययन : तृतीय उद्देशक : सूत्र 343-345 343. गृहस्थ के घर में भिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य से प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि यह आहार एषणीय है या अनैषणीय ? यदि उसका चित्त (इस प्रकार की) विचिकित्सा (आशंका) से युक्त हो, उसकी लेश्या (चित्तवृत्ति) अशुद्ध आहार की हो रही हो, तो वैसे (शंकास्पद) आहार के मिलने पर भी ग्रहण न करे। विवेचन शंकास्पद आहार लेने का निषेध-इस सूत्र में यह बताया गया है-साधु के मन में ऐसी शंका पैदा हो जाए कि पता नहीं यह आहार एषणीय है या अनेषणीय ? तथा उसके अन्तःकरण की वृत्ति (लेश्या) से भी यही आवाज उठती हो कि यह आहार अशुद्ध है, ऐसी शंकाकुलस्थिति में 'जं संके तं समावज्जे' इस न्याय से उस आहार को न लेना ही उचित है।' _ वितिगिछ समावन्नेण' आदि पदों के अर्थ वृत्तिकार के अनुसार इस प्रकार है--विचिकित्सा का अर्थ है-जुगुप्सा या अनैषणीय की आशंका, उससे ग्रस्त आत्मा से / असमाहडाए लेसाए का अर्थ है--अशुद्ध लेश्या से यानी यह आहार उद्गमादि दोष से दूषित है, इस प्रकार को चित्तविलुप्ति से अशुद्ध अन्तःकरण रूप लेश्या उत्पन्न होती है। भंडोपकरण सहित-गमनागमन 344. [1] से भिक्खू वा 2 गाहावतिकुलं पविसित्त कामे सव्वं भंडगमायाए गाहावतिकुलं पिंडवातपडियाए पविसेज्ज का णिक्खमेज्ज वा। [2]. से भिक्खू वा 2 बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा णिक्खममाणे वा पविस्स माणे वा सव्वं भंडगमायाए बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा गिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज [3] से भिक्खू वा 2 गामाणुगामं दूइज्जमाणे सव्वं भंडगमायाए गामाणुगामं दूइज्जेजा। 345. से भिक्खू वा 2 अह पुण एवं जाणेज्जा, तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए, तिव्वदेसियं वा महियं संणिवदमाणि पेहाए, महावारण वा रयं समुद्धतं पेहाए, तिरिच्छं संपातिमा वा तसा पाणा संथडा संणिवतमाणा पेहाए, से एवं गच्चा जो सव्वं भंडगमायाए गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए पविसेज्ज वा णिक्खमेज्ज वा, बहिया विहारभूमि वा विधारभूमि वा णिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। 1. टोका पत्र 332 के आधार पर। 2. टीका पत्र 332 के आधार पर / 3. यह 344 सूत्र जिनकल्पादि गच्छ-निर्गतसाधु के लिए विवक्षित है। फिर वा 2' यह पाठ यहाँ क्यों? ऐसी आशंका हो सकती है, तथापि आगे के दोनों सूत्रों में तथा इस ग्रन्थ में सर्वत्र से भिक्खू वा 2' ऐसा पाठ सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है, प्रायः सभी प्रतियों में। अत: ऐसा ही सूत्र पाठ सीधा है, ऐसा सोचकर (टिप्पणकार मे) मल में रखा है। वृत्तिकार ने भी 'सभिक्ष:' इस प्रकार निरूपण किया है। अतः 'वा 2' पाठ होते हुए भी यहाँ 'स भिक्ष :' इस प्रकार का वृत्तिकार का कथन युक्ति संगत लगता है। 4. तलना के लिए देखिए.-दसवेआलियं अ० उ०१ गा०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org