________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय भू तस्कन्ध थिएण वा परिहारिओ अपरिहारिएण सद्धि गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए पविसेज्ज वा णिक्खमेज्ज वा। 328. से भिक्खू वा 2 बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा गिवखममाणे वा पविसमाणे वा णो अण्णउथिएण वा गारथिएण वा परिहारिओ अपरिहारिएण वा सखि बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा णिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा। __326. से भिक्खू वा 2 गामाणुगाम दूइज्जमाणे णो अण्णउस्थिएण वा गारथिएण वा परिहारिओ अपरिहारिएण वा सद्धि गामाणुगामं दूइज्जेजा। 230. से भिक्खू वा 2 जाव पविढे समाणे णो अपणउत्थियस्स वा गारथियस वा परिहारिओ अपरिहारियस्स वा असणं वा 4' देज्जा वा अणुपदेज्जा वा। 327. गृहस्थ के घर में भिक्षा के निमित्त प्रवेश करने का इच्छुक भिक्षु या भिक्षुणी अन्यतीर्थिक या (भिक्षापिण्डोपजीवी) गृहस्थ के साथ, तथा पिण्डदोषों का परिहार करने वाला (पारिहारिक-उत्तम) साधु (पार्श्वस्थ आदि—) अपारिहारिक साधु के साथ भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में न तो प्रवेश करे, और न वहां से निकले। ___ 328. वह भिक्षु या भिक्षुणी बाहर विचारभूमि (शौचादि हेतु स्थंडिलभूमि) या विहार (-स्वाध्याय) भूमि से लौटते या वहाँ प्रवेश करते हुए अन्यतीर्थिक या परपिण्डोपजीवी गृहस्थ (याचक) के साथ तथा पारिहारिक अपारिहारिक (आचरण शिथिल) साधु के साथ न तो विचार-भूमि या विहार-भूमि से लौटे, न प्रवेश करे। 326. एक गांव से दूसरे गांव जाते हुए भिक्षु या भिक्षुणी अन्यतीथिक या गृहस्थ के साथ तथा उत्तम साधु पार्श्वस्थ आदि साधु के साथ ग्रामानुग्राम विहार न करे। 330. गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी अन्यतीर्थिक या परपिण्डोपजीवी याचक को तथैव उत्तम साधु पार्श्वस्थादि शिथिलाचारी साधु को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य न तो स्वयं दे और न किसी से दिलाए। विवेचन-अन्यतीथिक, गृहस्थ एवं अपारिहारिक के साथ सहगमन-निषेध-सू० 327 से सू० 330 तक में अन्यतीर्थिक आदि के साथ भिक्षा, स्थंडिलभूमि, विहार-भूमि, स्वाध्यायभूमि, विहार में सहगमन का तथा आहार के देने-दिलाने का निषेध किया गया है / अन्यतीर्थिक का अर्थ है-अन्य धर्म-सम्प्रदाय या मत के साधु / परपिण्डोपजीवी गृहस्थ से आशय है-जो परपिण्ड पर जीता हो, ये घर-घर से आटा मांगकर जीवन निर्वाह करने वाले गृहीवेषी लक मतानुयायी), वृद्ध श्रावक आदि / गृहस्थों से तात्पर्य है—मरुक् आदि भिक्षाचर। पारिहारिक वह है-जो मूल-उत्तर दोषों का परिहार करता है; अथवा जो मूलगुण-उत्तर गुणों को धारण करता है, आचरण करता है। उससे प्रतिपक्षी है-अपारिहारिक; वे भी अन्यतीथिक-गृहस्थ (परपिण्डोपजीवी) हैं; निष्कर्ष है-भिक्ष को गृहस्थ या अन्यतीथिकों के साथ, पारिहारिक का अपरिहारिक के साथ प्रवेश करना कल्पनीय नहीं है। 1. यहाँ '4' का चिन्ह 'पाणं वा खाइम वा साइमं वा'-इन शेष तीनों आहारों का सचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org