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________________ में चिन्तन प्रारम्भ किया। सुदीर्घ चिन्तन के पश्चात वि० स० 2036 वंशाख शुक्ला 10 महावीर कैवल्य दिवस को दृढ़ निर्णय करके आगम-बत्तीसी का सम्पादन-विवेचन कार्य प्रारम्भ कर दिया और अब पाठकों के हाथों में आगम ग्रन्थ, क्रमशः पहुँच रहे हैं, इसकी मुझे अत्यधिक प्रसन्नता है। आगमसम्पादन का यह ऐतिहासिक कार्य पूज्य गुरुदेव की पुण्यस्मृति में आयोजित किया गया है / आज उनका पुण्य स्मरण मेरे मन को उल्लसित कर रहा है। साथ ही मेरे वन्दनीय गुरु-भ्राता पूज्य स्वामी श्री हजारीमल जी महाराज की प्रेरणाएँ- उनकी आगम-भक्ति तथा आगमसम्बन्धी तलस्पर्शी ज्ञान, प्राचीन धारणाएँ मेरा सम्बल बनी है / अतः मैं उन दोनों स्वर्गीय आत्माओं की पुण्य स्मति में विभोर हूँ। शासनसेवी स्वामी जी श्री वृजलाल जी महाराज का मार्गदर्शन, उत्साह-संवर्द्धन, सेवाभावी शिष्य मुनि विनयकुमार व महेन्द्र मुनि का साहचर्य-बल; सेवा-सहयोग तथा महासती श्री कानवर जी, महा सती श्री झणवारकवर जी, परम विदुषी साध्वी श्री उमराव कवर जी 'अर्चना की विनम्र प्रेरणाएँ मुझे सदा प्रोत्साहित तथा कार्यनिष्ठ बनाए रखने में सहायक रही है। मुझे दृढ़ विश्वास है कि आगम-वाणी के सम्पादन का यह सुदीर्घ प्रयत्नसाध्य कार्य सम्पन्न करने में मुझे सभी सहयोगियों, श्रावकों व विद्वानों का पूर्ण सहकार मिलता रहेगा और मैं अपने लक्ष्य तक पहँचने में गतिशील बना रहेगा ! इसी आशा के साथ --मुनि मिश्रीमल ‘मधुकर' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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