SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 275 भावारांग सूत्र–प्रथम श्रुतस्तन्य पग-दगमट्टिय-मक्कडासंताणए पडिलैहिय पडिलैहिय पमज्जिय पत्रिय समाई संपरेज्जा, सणाई संथरेता एत्थ वि समए इत्तिरियं कुज्जा। तं सच्चं सच्चवादी ओए खिणे छिण्णकहकहैं आतीतढे अगातीते विध्याग भेदुरं कायं संविधुणिय विरुवरुवे परीसहोवमम्मे अस्मि विस्संभगमाए भेरवमविणे। तस्यादि तमा कालपरियार / से कि तस्य वियंतिकारए / / इच्छेतं विमोहायतणं हितं सुहं खमं निस्सैस आगामियं नि बेमि / // छठ्ठो उद्देसको समतो / / 224. जिस भिक्षु के मन में ऐसा अध्यवसाय हो जाता है कि सचमुच में इस समय (साधुजीवन की आवश्यक क्रियाएँ करने के लिए) इस (अत्यन्त जीर्ण एवं अशक्त) शरीर को वहन करने में त्रमश: ग्लान (असमर्थ) हो रहा हूँ, (ऐसी स्थिति में) वह भिक्ष क्रमश: (तप के द्वारा) आहार का संवर्तन (संक्षेप) करे और ऋमशः आहार का संक्षेप करके वह कषायों को कृश (स्वल्य) करे। कषायों को स्वल्प करके समाधि युक्त लेश्या (अन्तःकरण की वृत्ति) वाला तथा फना की तरह शरीर और कषाय दोनों ओर से कृष बना हुआ वह भिक्षु समाधिमरण के लिए उस्थित होकर शरीर. के सन्ताप को शान्त कर ले / वह संलेखना करने वाला भिक्षु शरीर में चलने की शक्ति हो, तभी) क्रमशः ग्राम में, नगर में, खेड़े में, कर्बट में, मडंब में, पट्टन में, द्रोणमुख में, आकर में, प्राश्रम में, सन्निवेश में, निगम में, या राजधानी में (किसी भी वस्ती में) प्रवेश करके घास (सूखा तृण-पलाल) की याचना करे / घास को याचना करके / प्राप्त होने पर उसे लेकर (ग्राम आदि के बाहर) एकान्त में चला जाए / वहाँ एकान्त स्थान में जाकर जहाँ कीड़े आदि के अंडे, जीव-जन्तु, बीज, हरियाली (हरीघास), ओस, उदक, चींटियों के बिल ( कोड़ीनगरा), फफूदी, काई, पानी का दलदल या मकड़ी के जाले न हों, वैसे स्थान का बार-बार प्रतिलेखन ( निरीक्षण) करके, उसका बार-बार प्रमार्जन (सफाई) करके, घास का संथारा (संस्तारक-बिछौना) करे। घास का बिछौना बिछाकर उस पर स्थित हो, उस समय इत्वरिक अनशन ग्रहण कर ले। वह (इत्वरिक-इंगित-मरणार्थ ग्रहण किया जाने वाला अनशन ) सत्य है / बह सत्यवादी (प्रतिज्ञा में पूर्णतः स्थित रहने वाला), राग-द्वेष रहित, संसार-सागर को पार करने वाला, 'इंगितमरण की प्रतिज्ञा निभेगी या नहीं ?' इस प्रकार के लोगों के कहकहे ( शंकाकुल-कथन) से मुक्त या किसी भी रागात्मक कथा-कथन से दूर जीकादि पदार्थों का सांगोपांग ज्ञाता अथवा सब बातों (प्रयोजनों) से अतीत, संसार 1. 'इसिरिय' का अर्थ चणि में किया गया है - 'इत्तिरियं नाम अप्पकालिय' इत्वरिक अर्थात् अल्प कालिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy