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________________ आचाररांग सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्छ कहा है। प्रकल्प का अर्थ है-विशिष्ट आचार-मय दिानों का संकल्प या प्रतिज्ञा / यहाँ 6 प्रकल्पों का वर्णन है-- (1) मैं ग्लान हूँ, सार्मिक भिक्षु अग्लान हैं, स्वेच्छा से उन्होंने मुझे सेवा का बच र दिया है, अतः वे सेवा करेंगे तो मैं सहर्ष स्वीकार करूंगा। (2) मेरा सार्मिक भिक्षु ग्लान है, मैं अग्लान हूँ, उसके द्वारा न कहने पर भी मैंने उसे सेवा का वचन दिया है, अत: निर्जरादि की दृष्टि से मैं उसकी सेवा करूंगा। (3) सार्मिकों के लिए पाहारादि लाऊँगा, और उनके द्वारा लाए हुए पाहारादि का सेवन भी करूंगा। (4) साधर्मिकों के लिए अाहारादि लाऊँगा, किन्तु उनके द्वारा लाये हुए आहारादि का सेवन नहीं करूंगा। (5) सार्मिकों के लिए प्राहा। दि नहीं लाऊँगा, किन्तु उनके द्वारा लाये हुए पाहारादि का सेवन करूगा / ' (6) मैं न तो सार्मिकों के लिए ग्राहारादि लाऊँगा और न उनके द्वारा लाये हुए पाहारादि का सेवन करूंगा। सहयोग भी अदोनभाव से-ऐसा रढ़प्रतिज्ञ साधक अपनी प्रतिज्ञानुसार यदि अपने साधमिक भिक्षुत्रों का सहयोग लेता भी है तो प्रदीनभाव से, उनकी स्वेच्छा से ही। न तो वह किसी पर दबाव डालता है, न दीनस्वर से गिड़गिड़ाता है। वह अस्वस्थ दशा में भी अपने साधर्मिकों को सेवा के लिए नहीं कहता। वह कर्मनिर्जरा समझ कर करने पर ही उसकी सेवा को स्वीकार करता है। स्वयं भी सेवा करता है, बशर्ते कि वैसी प्रतिज्ञा लो हो / ' प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहे---इन छह प्रकार की प्रतिज्ञाओं में से परिहारविशुद्धिक या यथालन्दिक भिक्षु अपनी शक्ति, रुचि और योग्यता देखकर चाहे जिस प्रतिज्ञा को अंगीकार करे, चाहे वह उत्तरोत्तर क्रमशः सभी प्रतिज्ञाओं को स्वीकार करे, लेकिन वह जिस प्रकार की प्रतिज्ञा ग्रहण करे, जीवन के अन्त तक उस पर दृढ़ रहे। चाहे उसका जंघाबल क्षीण हो जाए, वह स्वयं अशक्त, जीर्ण, रुग्ण या अत्यन्त ग्लान हो जाये, लेकिन स्वीकृत प्रतिज्ञा भंग न करे, उस पर अटल रहे। अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए मृत्यु भी निकट दिखाई देते लगे या मारणान्तिक उपसर्ग या कष्ट आये तो वह भिक्षु भत्त.-प्रत्याख्यान (या भक्तपरिज्ञा) नामक अनशन (सल्लेखनापूर्वक) करके समाधिमरण का सहर्ष प्रालिंगन करे किन्तु किसी भी दशा में प्रतिज्ञा न तोड़े 13 इन प्रकल्पों के स्वीकार करने से लाभ-साधक के जीवन में इन प्रकल्पों से प्रात्मबल 1. प्राचा० शीला टीका पत्र 281 / (क) प्राचा० शीला० टीको पत्रांक 282 / (ख) प्राचारांग (प्रा० श्री आत्मारामजी महाराज कृत टीका) पृष्ठ 591 / 3. प्राचा० शीला टीका पत्रांक 282 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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