________________ माचारोग सूत्र-प्रथम भूतका .'कालोबजीते' शब्द से शास्त्रकार ने यह व्यक्त किया है कि काल (आयुष्य-क्षय की प्रतीक्षा की जानी चाहिए)। __ चूर्णिकार ने 'कालोवगीते' शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है - कालोपनीत शब्द से यह ध्वनित होता है कि काल (मृत्यु) प्राप्त न हो तो मरण का उद्यस नहीं करना चाहिए। इस सम्बन्ध में प्राचार्य नागार्जुन का अभिमत साक्षी है-(साधक विचार करता है -) “यदि मैं आषुष्य क्षय न होने की स्थिति में मृत्पु प्राप्त कर जाऊँगा तो सुपरिणाम का लोप, प्रकीति और दुर्गतिगमन हो जाएगा।" इसलिए शास्त्रकार कहते हैं- खेज्य कालं आव सरीरभेवो' –जब तक शरीर छुटे नही तब तक काल (मृत्यु) की प्रतीक्षा करे।' ...... 'कालोपगीते' का प्राशय वृत्तिकार प्रगट- करते हैं - मृत्युकाल ने परवश कर दिया, इसलिये१२ वर्ष तक संलेखना द्वारा अपने आपको कृश करके पर्वत की गुफा प्रादि स्थण्डिल भूमि में पादपोपगमन, इंगित-मरण या भक्तपरिज्ञा, इनमें से किसी एक द्वारा अनशन-स्थित होकर मरण (आयुष्य क्षय) तक यानी प्रास्मा से शरीर पृथक् होने तक, प्राकांक्षा-प्रतीक्षा करे। 'अवि हम्ममाणे -- यह समाधि-मरण के साधक का विशेषण है। इसके द्वारा सूचित किया गया है कि साधक को अन्तिम समय में परीषहों और उपसों से घबराना नहीं चाहिए, पराजित न होना चाहिए। बल्कि इनसे आहत होने पर फलकवत् सुस्थिर रहना चाहिए। अन्यथा समाधि-मरण का अवसर खोकर वह बालमरण को प्राप्त हो जाएगा। 3 . से हु पारंगमे मुणी' - जो मुनि मृत्यु के समय मोहमूढ़ नहीं होता, परीषहों और उपसर्गों को समभाव से सहता है, वह अवश्य ही पारगामी, संसार या कर्म का अंत पाने वाला हो जाता है / अथवा जो संयम भार उठाया था, उसे पार पहुंचाने वाला होता है।' // पंचम उद्देशक समाप्त // ॥'धूत' षष्ठ अध्ययन समाप्त / / 1. "कालाहमा 'कालोवगीतो' ब्रहणाद्वाण अपत्ते काले मरणास्त उज्जमियर / एष भागमा ... सविखनो-'जति खलु अहं अपुग्ने आउत्ते उकालं करिस्सामि तो-परिग्णालोवे अकित्ती दुग्गति गमषं च भविस्सरं / ' सो एवं कालोबणीतो।" --आचारांग जूणि पृ० 68 2. प्राचा. शीला टीका पत्र 234 / 3. प्राचा० शीला• टीका पत्र 234 / 4. भाचा.शीला. टीका पत्र 234 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org