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________________ 152 भाचारांग सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध अविद्या मोक्ष का कारण नहीं है / चूर्णिकार 'मविनाए' के स्थान पर 'विजाए' पाठ मानकर इसका अर्थ करते हैं-जैसे मंत्रों से विष का नाश हो जाता है (उतर जाता है), वैसे ही विद्या (देवी के मंत्र) से या (कोरे ज्ञान से) कोई-कोई परिमोक्ष (सर्वथा मुक्ति) चाहते हैं, जैसे सांख्य / विद्या-तत्त्वज्ञान से ही मोक्ष होता है, यह सांख्यों का मत है / जैसा कि सांख्य कहते हैं--- पंचविशतितस्वनो यत्रकुत्राश्रमे रतः। अटी मुंडी शिखी वाऽपि, मुच्यते नात्र संशयः / / -25 तत्त्वों का जानकार किसी भी आश्रम में रत हो, अवश्य मुक्त हो जाता है, चाहे वह जटाधारी हो, मुण्डित हो या शिखाधारी हो। मोक्ष से विपरीत संसार है / अविद्या संसार का कारण है / अतः नो दार्शनिक अविद्या को विद्या मानकर मोक्ष का कारण बताते हैं, वे संसार के भंवरजाल में बार-बार पर्यटन करते रहते हैं, उनके संसार का अन्त नहीं पाता। // प्रथम उद्देशक समाप्त // बिइओ उद्देसओ द्वितीय उद्देशक अप्रमाद का पथ 152. आवंती केआवंती लोगंसि अणारंभजीवी, एतेसु' चेव अणारंभजीवी। एत्योवरते तं झोसमाणे अयं संधी ति अदक्खु, जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणे त्ति अन्नेसी। एस मग्गे आरिएहि पवेदिते / उठिते जो पमादए जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सातं पुढो छंदा' इह माणवा / पुढो दुक्खं पवेदितं / से अविहिंसमाणे अणवयमाणे पुट्ठो फासे विपणोल्लए। एस समियापरियाए विवाहिते। 1. 'एतेसु चेव अणारंजीवी' के बदले चूणि में पाठ है-'एतेसु चेव छक्काएसु'–इन्हीं षड़ जीव निकायों में...."। शीलांकाचार्य अर्थ करते हैं-'तेष्वेव गृहिषु' अर्थात् --उन्हीं गृहस्थों में / ' 2. 'अन्नेसी' के बदले 'मण्णेसी' 'मन्नेसी' पाठ है, जिसका अर्थ है- मानते हैं / 3. 'पुढो छंदा इह माणवा' के बदले 'पुढो छंदाणं माणवाण' पाठ है- अलग-अलग स्वच्छन्द मानवों 4. 'से अविहिंसमाणे...' इत्यादि पाठ का अर्थ चूणि में मिलता है- "अणारंभजीविणा तयो अधिट्ट्यप्वो, जत्थ उवदेसो पुढो (पुट्ठो) फासे / अहवा जति तं घिरतं परीसहा फुसिज्जा तत्थ सुतं-पुट्ठो फासे विपणोल्लए / पुट्ठो पत्तो।" इसका अर्थ है-अनारम्भजीवी को तपश्चर्या का अनुष्ठान करना चाहिए / जिस साधक के हृदय में भगवदुपदेश स्पर्श कर गया है यह परीषहों का स्पर्श होने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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