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________________ आचारांग सूत्र-प्रथम संस्करण के प्रकाशन में विशिष्ट अर्थ सहयोगी श्रीमान् सायरमलजी व श्रीमान् जेठमलजी चोरड़िया [संक्षिप्त परिचय] एक उक्ति प्रसिद्ध है— "ज्ञानस्य फलं विरतिः"-ज्ञान का सुफल है---वैराग्य / वैसे ही एक सूक्ति है-"वित्तस्य फलं वितरणं"--धन का सुफल है-दान! पात्र में, योग्य कार्य में अर्थ व्यय करना, धन का सदुपयोग है। नोखा (चांदावतों का) का चोरडिया परिवार इस सूक्ति का आदर्श उदाहरण है। मद्रास एवं बेंगलूर आदि क्षेत्रों में बसा, यह मरुधरा का दानवीर परिवार आज समाज-सेवा, शिक्षा, चिकित्सा, साहित्यप्रसार, राष्ट्रीय सेवा प्रादि विभिन्न कार्यों में मुक्त मन से और मुक्त हाथ से उपार्जित लक्ष्मी का सदुपयोग करके यशोभागी बन रहा है। नागौर जिला तथा मेड़ता तहसील के अन्तर्गत चांदावतों का नोखा एक छोटा किन्तु-सुरम्य ग्राम है। इस ग्राम में चोरड़िया, बोथरा व ललवाणी परिवार रहते हैं / प्रायः सभी परिवार व्यापार-कुशल हैं, सम्पन्न हैं। चोरडिया परिवार के घर इस' ग्राम में अधिक हैं। चोरडिया परिवार के पूर्वजों में श्री उदयचन्दजी पूर्व-पुरुष हुए। उनके तीन पुत्र हुए-श्री हरकचन्दजी, श्री राजमलजी व श्री चान्दमलजी / श्री हरकचन्दजी के एक पुत्र थे श्री गणेशमलजी। श्री राजमलजी के छः पुत्र हुए-श्री गुमानमलजी, श्री मांगीलालजी, श्री दीपचन्दजी, श्री चंपालालजी, श्री चन्दनमलजी, श्री फूलचन्दजी। श्रीमान् राजमलजी अब संसार में नहीं रहे / उनका पुत्र-परिवार धर्मनिष्ठ है, सम्पन्न है। श्री राजमलजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री गुमानमलजी मद्रास जैन-समाज के एक श्रावकरत्न हैं / त्यागवृत्ति, सेवा-भावना, उदारता, सार्मि-वत्सलता ग्रादि गुणों से आपका जीवन चमक रहा है। श्री गणेशमलजी जब छोटे थे, तभी उनके पिता श्री हरकचन्दजी का देहान्त हो गया। माता श्री रूपी बाई ने ही गणेशमलजी का पालन-पोषण व शिक्षण प्रादि कराकर उन्हें योग्य बनाया। श्री रूपी बाई बड़ी हिम्मत वाली बहादुर महिला थीं, विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने धर्म-ध्यान, तपस्या आदि के साथ पुत्र-पौत्रों का पालन व सुसंस्कार प्रदान करने में बड़ी निपुणता दिखायो। श्री गणेशमलजी राजमलजी का पिता के तुल्य ही प्रादर व सम्मान करते तथा उनकी प्राज्ञानों का पालन करते थे। श्री गणेशमलजी की पत्नी का नाम सुन्दर बाई था। सुन्दर बाई बहुत सरल व भद्र स्वभाव की धर्मशीला श्राविक थीं। अभी-अभी आपका स्वर्गवास हो गया। श्री गणेशमलजी के दस पुत्र एवं पुत्री हुए जिनके नाम इस प्रकार हैं--श्री जोगीलालजी, श्री पारसमलजी, श्री अमरचन्दजी, श्री मदनलालजी, श्री सायरमलजी, श्री पुखराजजी, श्री जेठमलजी, [ 17 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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