________________ वित्तीय अध्ययन : पंचम उद्देशक : सूत्रक सूत्रों व टीकाओं में 'आम' व 'ग्रामपंध' शब्द प्राधाकादि दोष से दुषित, अशुद्ध तथा भिक्षु के लिए अकल्पनीय आहार के अर्थ में अनेक स्थानों पर अपया है / / कालज्ञ आदि शब्दों का विशेष प्राशय इस प्रकार है कालण्मे---कालज्ञ-भिक्षा के उपयुक्त समय को जाननेवाला अथवा काल-प्रत्येक पावश्यक क्रिया का उपयुक्त समय, उसे जानने वाला समय पर अपना कर्तव्य पूरा करने वाला कालज्ञ' होता है। बलण्णे-बलज्ञ-अपनी शक्ति एवं सामथ्र्य को पहचाननेवाला तथा शक्ति का, तप, सेवा प्रादि में योग्य उपयोग करने वाला। मातणे--मात्रज्ञ--भोजन प्रादि उपयोम में लेने वाली प्रत्येक वस्तु का परिमाणमात्रा जानने वाला। खेयपणे-खेदज्ञ-दूसरों के दुःख एवं पीड़ा प्रादि को समझनेवाला तथा क्षेत्रज्ञअर्थात् जिस समय व जिस स्थान पर भिक्षा के लिए जाना हो, उसका भलीभाँति ज्ञान रखने वाला। खणयण्णे-क्षण-क्षण को, अर्थात समम को पहचानने वाला / काल और क्षण में अन्तर यह है कि-काल, एक दीर्घ अवधि के समय को कहा गया है। जैसे दिन-रात, पक्ष आदि / क्षण-छोटी अवधि का समय / वर्तमान समय क्षण कहलाता है। विणयण्णे--विनयज्ञ---ज्ञान-दर्शन-चारित्र को विनय कहा गया है। इन तीनों के सम्यक स्वरूप को जानने वाला। अथवा विनय-बड़ों एवं छोटों के साथ किया जाने वाला व्यवहार / व्यवहार के औचित्य का जिसे ज्ञान हो, जो लोक-व्यवहार का ज्ञाता हो। विनय का अर्थ प्राचार भी है। अत: विनयज्ञ का अर्थ प्राचार का ज्ञाता भी है। समयण्णे-समयज्ञ / यहाँ 'समय' का अर्थ सिद्धान्त है। स्व-पर सिद्धान्तों का सम्यक् ज्ञाता समयज्ञ कहलाता है। भावण्णे--भावज्ञ व्यक्ति के भावों-चित्त के अव्यक्त प्राशय को, उसके हाव-भावचेष्टा एवं विचारों से ध्वनित होते गुप्त भावों को समझने में कुशल व्यक्ति भावज्ञ कहलाता है। परिग्गहं अममायमाणे-पद में 'परिग्रह' का अर्थ शरीर तथा उपकरण किया गया है।' साधु परिग्रहत्यागी होता है। शरीर एवं उपकरणों पर मूर्छा-ममता नहीं रखता। अतः यहाँ शरीर ार उपकरण को 'परिग्रह कहने का आशय-संयमोपयोगी बाह्य साधनों से ही है। 1. अभिधान राजेन्द्र भाग 2, 'प्राम' शब्द पृष्ठ 315 / 2. खित्तणो भिक्खायरियाकुसलो-प्राचा० चूर्णि। 3. प्राचा. टीका पत्रांक 12011 5. प्राचा० शीला० टीका पत्रांक 120 1 / 7. प्राचा, शीला० टीका पत्रांक 12012 उत्तरा० 11 की टीका। प्राचा० शीला दीका पत्रांक 120 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org