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________________ कुछ सज्जनों का सुझाव था कि सर्वप्रथम दशवकालिक, नन्दीसूत्र आदि का प्रकाशन किया जाय किन्तु श्रद्धेय मुनिश्री मधुकरजी महाराज का विचार प्रथम अंगाच रांग से ही प्रारम्भ करने का था / क्योंकि प्राचारांग समस्त अंगों का सार है। ___ इस सम्बन्ध में यह स्पष्टीकरण कर देना आवश्यक प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में प्राचारांग आदि क्रम से ही भागमों को प्रकाशित करने का विचार किया गया था, किन्तु अनुभव से इसमें एक बड़ी अड़चन जान पड़ी। वह यह कि भगवती जैसे विशाल आगमों के सम्पादन-प्रकाशन में बहुत समय लगेगा और तब तक अन्य आगमों के प्रकाशन को रोक रखने से सब आगमों के प्रकाशन में अत्यधिक समय लग जाएगा / हम चाहते हैं कि यथासंभव शीघ्र यह शुभ कार्य समाप्त हो जाय तो अच्छा / अतः यही निर्णय रहा है कि आचारांग के पश्चात् जो-जो आगम तैयार होते जायें उन्हें ही प्रकाशित कर दिया जाय / नवम्बर 1979 में महामन्दिर (जोधपुर) में आगम समिति का तथा विद्वानों का सम्मिलित अधिवेशन हुआ था। उसमें सभी सदस्यों ने यह भावना व्यक्त की कि श्रद्धेय मुनि श्री मधुकरजी महाराज के युवाचार्यपदचादर प्रदान समारोह के शुभ अवसर पर प्राचारांगसूत्र का विमोचन भी हो सके तो अधिक उत्तम हो। यद्यपि समय कम था और प्राचारांगसूत्र का सम्पादन भी अन्य प्रागमों की अपेक्षा कठिन और जटिल था, फिर भी समिति के सदस्यों की भावना का आदर कर श्रीचन्दजी सुराणा ने कठिन परिश्रम करके प्राचारांग के प्रथम श्रतस्कंध का कार्य समय पर पूर्ण कर दिया। सर्वप्रथम हम श्रमणसंध के युवाचार्य, सर्वतोभद्र, श्री मधुकर मुनिजी महाराज के प्रति अतीव प्राभारी हैं, जिनकी शासनप्रभावना की उत्कट भावना, भागमों के प्रति उद्दाम भक्ति, धर्मज्ञान के प्रचार-प्रसार के प्रति तीव्र उत्कंठा और साहित्य के प्रति अप्रतिम अनुराग की बदौलत हमें भी वीतरागवाणी की किचित सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हो सका। दुःख का विषय है कि आज हमारे मध्य युवाचार्यश्रीजी विद्यमान नहीं हैं तथापि उनका शुभ आशीर्वाद हमें प्राप्त है, जिसकी बदौलत उनके द्वारा रोपा हुआ यह ग्रन्थमाला-कल्पवृक्ष निरन्तर फल-फूल रहा है और साधारणसभा (जनरल कमेटी) के निश्चयानुसार श्री प्राचारांगसूत्र प्रथम श्रुतस्कन्ध का जो प्रथम ग्रन्थांक के रूप में मुद्रित हुआ था, द्वितीय संस्करण प्रकाशित करने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है / उपासकदशांगसूत्र भी दूसरी बार मुद्रित हो गया है। इन दोनों प्रागमों का सुप्रसिद्ध प्रागमवेत्ता श्री उमेशमुनिजी म. ने कृपा कर अवलोकन किया है और यथोचित संशोधन-सुझाव देकर हमें उपकृत किया है। रतनचन्द मोदी कार्यवाहक अध्यक्ष सायरमल चोरडिया महामन्त्री श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर या अमरचन्द मोदी मन्त्री अमरचन्द मोदी [8] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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