SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० अनुयोगद्वारसूत्र हैं और करेंगे, अथवा जहां पर जिस किसी महर्षि ने संस्तारक करके मरणधर्म को प्राप्त किया हो, उस स्थान का नाम सिद्धशिलातल है। नोआगमभव्यशरीरद्रव्यावश्यक १८. से किं तं भवियसरीरदव्वावस्सयं ? भवियसरीरदव्वावस्सयं जे जीवे जोणिजम्मणणिक्खंते इमेणं चेव सरीरसमुस्सएणं आदत्तएणं जिणोवदिटेणं भावेणं आवस्सए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ । जहा को दिटुंतो ? अयं मुहुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ । से तं भवियसरीरदव्वावस्सयं । . [१८ प्र.] भगवन् ! भव्यशरीरद्रव्यावश्यक का क्या स्वरूप है ? [१८ उ.] आयुष्मन् ! समय पूर्ण होने पर जो जीव जन्मकाल में योनिस्थान से बाहर निकला और उसी प्राप्त शरीर द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार भविष्य में आवश्यक पद को सीखेगा, किन्तु अभी सीख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीरद्रव्यावश्यक कहलाता है। शिष्य- इसका कोई दृष्टान्त है ? आचार्य (दृष्टान्त इस प्रकार है-) यह मधुकुंभ होगा, यह घृतकुंभ होगा। यह भव्यशरीरद्रव्यावश्यक का स्वरूप है। विवेचन- सूत्र में नोआगमद्रव्यावश्यक के दूसरे भेद भव्यशरीरद्रव्यावश्यक का स्वरूप बतलाया है। वर्तमान की अपेक्षा इस शरीर में आगम के अभाव को लेकर नोआगमता जानना चाहिए। यद्यपि इस समय के शरीर में आगम का अभाव है, लेकिन भाविनि भूतवदुपचारः' भावी में भी भूत की तरह उपचार होता है—के न्यायानुसार भविष्यकालीन स्थिति को ध्यान में रखकर उपचार से उसमें द्रव्यावश्यकता मानी है। क्योंकि वर्तमान में न सही किन्तु यही शरीर आगे चलकर इसी पर्याय में आवश्यकशास्त्र का ज्ञाता बनेगा। यही बात दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट की गई है कि भविष्य में मधु या घृत जिनमें भरा जाएगा उन घड़ों को वर्तमान में मधुघट या घृतघट कहा जाता है। इन दोनों दृष्टान्तों में संकल्पमात्रग्रही नैगमनय की अपेक्षा है। ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यावश्यक १९. से किं तं जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दव्वावस्सए ? जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दव्वावस्सए तिविधे पण्णत्ते । तं जहा—लोइए १ कुप्पावयणिते २ लोउत्तरिते ३ । [१९ प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यावश्यक का क्या स्वरूप है ? [१९ उ.] आयुष्मन् ! ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यावश्यक तीन प्रकार का है। यथा—१. लौकिक, २. कुप्रावचनिक, ३. लोकोत्तरिक। विवेचन— सूत्र में उभयव्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक के तीन भेदों के नाम गिनाये हैं। यथाक्रम उनका वर्णन
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy