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________________ आवश्यकनिरूपण १३ ११. से किं तं ठेवणावस्सयं ? जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरि वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अणेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा आवस्सए ति ठवणा ठविज्जति । से तं ठवणावस्सयं । [११ प्र.] भगवन् ! स्थापना - आवश्यक का क्या स्वरूप है ? [११ उ.] आयुष्मन् ! स्थापना - आवश्यक का स्वरूप इस प्रकार है— काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पुस्तकर्म, लेप्यकर्म, ग्रंथिम, वेष्टिम, पूरिम, संघातिम, अक्ष अथवा वराटक में एक अथवा अनेक आवश्यक रूप से जो सद्भाव अथवा असद्भाव रूप स्थापना की जाती है, वह स्थापना - आवश्यक है। यह स्थापना - आवश्यक का स्वरूप है। १२. नाम - ट्ठवणाणं को पइविसेसो ? णामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा । [१२ प्र.] भगवन् ! नाम और स्थापना में क्या भिन्नता — अंतर है ? [१२ उ.] आयुष्मन् ! नाम यावत्कथिक होता है, किन्तु स्थापना इत्वरिक और यावत्कथिक, दोनों प्रकार की होती है। विवेचन — इन तीन सूत्रों में नाम और स्थापना आवश्यक का स्वरूप एवं दोनों की विशेषता — भिन्नता का निर्देश किया है। नाम- आवश्यक नाम, अभिधान या संज्ञा को कहते हैं। अतएव तदात्मक आवश्यक नाम- आवश्यक कहलाता है। नाम- आवश्यक में नाम ही आवश्यक रूप होता है अथवा नाम मात्र से ही जो आवश्यक कहलाये वह नाम - आवश्यक है । नाम का क्षेत्र इतना व्यापक है कि लोकव्यवहार चलाने के लिए जीव, अजीव, जीवों, अजीवों अथवा जीवाजीव से मिश्रित पदार्थ अथवा पदार्थों के लिए उपयोग होता है। इसको उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करते हैं जीव का आवश्यक यह नामकरण किये जाने में व्यक्ति की इच्छा मुख्य है । जैसे किसी व्यक्ति ने अपने पुत्र का नाम देवदत्त रखा। लेकिन उसे देव ने दिया नहीं है, फिर भी लोकव्यवहार के लिए ऐसा कहा जाता है। यही दृष्टि नाम - आवश्यक के लिए भी समझना चाहिए कि भाव- आवश्यक से शून्य किसी जीव, अजीव का व्यवहारार्थ आवश्यक नामकरण कर दिया गया है। एक अजीव में आवश्यक नाम का प्रयोग इस प्रकार जानना चाहिए आवश्यक शब्द का एक अर्थ आवास भी बतलाया है । अतएव सूखे अचित्त अनेक कोटरों से व्याप्त वृक्षादि में 'यह सर्प का आवास है,' इस नाम से लोकव्यवहार होता है । अनेक जीवों के लिए आवासक यह नाम इस प्रकार घटित होता है— इष्टिकापाक आदि की अग्नि में अनेक मूषिकायें संमूर्च्छन जन्म धारण करती हैं। इस अपेक्षा से वह इष्टिकापाक आदि की अग्नि मूषिकावास रूप से कही जाती है। इस प्रकार उन असंख्यात अग्निजीवों का आवासक नाम सिद्ध होता है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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