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________________ परिशिष्ट १ कथानक सूत्रसंख्या ९० १. डोडिणी ब्राह्मणी किसी ग्राम में डोडिणी नाम की ब्राह्मणी रहती थी । उसकी तीन पुत्रियां थीं। उनका विवाह करने के बाद | उसे विचार हुआ कि जमाइयों के स्वभाव को जानकर मुझे अपनी पुत्रियों को वैसी शिक्षा - सीख देनी चाहिए, जिससे उसी के अनुरूप व्यवहार कर वे अपने जीवन को सुखी बना सकें। ऐसा विचार कर उसने अपनी तीनों पुत्रियों को बुलाकर सलाह दी - ' आज जब तुम्हारे पति सोने के | लिए शयनकक्ष में आएं जब तुम कोई न कोई कल्पित दोष लगाकर उनके मस्तक पर लात मारना । तब वह जो कुछ तुमसे कहें सुबह मुझे बताना ।' पुत्रियों ने माता की बात मान ली और रात्रि के समय अपने-अपने शयनखंड में बैठकर पति की प्रतीक्षा करने लगीं। जब ज्येष्ठ पुत्री का पति शयनखंड में आया, तब उसने कल्पित दोष का आरोपण करके उसके मस्तक पर लात मारी । लात लगते ही पति ने उसका पैर पकड़ कर कहा- 'प्रिये ! पत्थर से भी कठोर मेरे शिर पर | तुमने जो केतकी पुष्प के समान कोमल पग मारा, उससे तुम्हारा चरण दुखने लगा होगा।' इस प्रकार कहकर वह उसके पैर को सहलाने लगा । दूसरे दिन बड़ी पुत्री ने आकर रातवाली घटना मां को सुनाई। सुन कर ब्राह्मणी बहुत हर्षित हुई । जमाई | के इस बर्ताव से वह उसके स्वभाव को समझ गई और पुत्री से बोली – तू अपने घर में जो करना चाहेगी, कर सकेगी। क्योंकि तेरे पति के व्यवहार से लगता है कि वह तेरी आज्ञा के अधीन रहेगा । दूसरी पुत्री ने भी माता की सलाह के अनुरूप अपने पति के मस्तक पर लात मारी । तब उसका पति | थोड़ा रुष्ट हुआ और उसने अपने रोष को मात्र शब्दों द्वारा प्रकट किया— मेरे साथ तूने जो व्यवहार किया वह | कुलवधुओं के योग्य नहीं है। तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसा कहकर वह शान्त हो गया । प्रात: दूसरी पुत्री ने भी सब प्रसंग माता को कह सुनाया। माता ने संतुष्ट होकर उससे कहा— बेटी ! तू भी | अपने घर में इच्छानुरूप प्रवृत्ति कर सकेगी। पति का स्वभाव ऐसा है कि वह चाहे जितना रुष्ट हो, लेकिन क्षण मात्र में शांत-तुष्ट हो जायेगा । तीसरी पुत्री ने भी किसी दोष के बहाने अपने पति के मस्तक पर लात मारी। इससे पति के क्रोध का पार नहीं रहा और डाट कर बोला —–अरी दुष्टा ! कुल - कन्या के अयोग्य यह व्यवहार मेरे साथ क्यों किया ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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