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सामायिक निरूपण
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विवेचन — सूत्र में नाम और स्थापनासामायिक की व्याख्या करने के लिए 'पुव्वभणियाओ' पद दिया है। अर्थात् पूर्व में नाम-आवश्यक और स्थापना - आवश्यक की जैसी वक्तव्यता है, तदनुरूप यहां आवश्यक के स्थान पर सामायिक पद का प्रक्षेप करके व्याख्या कर लेनी चाहिए ।
द्रव्यसामायिक
५९५. दव्वसामाइए वि तहेव, जाव से तं भवियसरीरदव्वसामाइए ।
[५९२] भव्यशरीरद्रव्यसामायिक तक द्रव्यसामायिक का वर्णन भी तथैव ( द्रव्य - आवश्यक के वर्णन जैसा) जानना चाहिए।
५९६. से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वसामाइए ?
जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वसामाइए पत्तय-पोत्थयलिहियं । से तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दळ्सामाइए । से तं णोआगमतो दव्वसामाइए । से तं दव्वसामाइए ।
[५९६ प्र.] भगवन्! ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यसामायिक का क्या स्वरूप है ?
[५९६ उ.] आयुष्मन् ! पत्र में अथवा पुस्तक में लिखित 'सामायिक' पद ज्ञशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य सामायिक है ।
इस प्रकार से नोआगमद्रव्यसामायिक एवं द्रव्य सामायिक की वक्तव्यता जानना चाहिए।
विवेचन – सूत्र ५९५, ५९६ में द्रव्यसामायिक के दो विभाग करके वर्णन किया है। जिसका आशय यह है कि आगम तथा नोआगम रूप दूसरे भेद के ज्ञायकशरीर, भव्यशरीर प्रभेद तक का वर्णन तो पूर्ववर्णित आवश्यक के अनुरूप है। किन्तु उभयव्यतिरिक्त का वर्णन उससे भिन्न होने के कारण सूत्रानुसार जान लेना चाहिए। भावसामायिक
५९७. से किं तं भावसामाइए ?
भावसामाइए दुविहे पण्णत्ते । तं जहा आगमतो य नोआगमतो य ।
[५९७ प्र.] भगवन्! भावसामायिक का क्या स्वरूप है ?
[५९७ उ.] आयुष्मन् ! भावसामायिक के दो प्रकार हैं। यथा—१. आगमभावसामायिक २. नोआगमभावसामायिक |
५९८. से किं तं आगमतो भावसामाइए ?
आगमतो भावसामाइए भावसामाइयपयत्थाहिकारजाणए उवउत्ते । से तं आगमतो भावसामाइए ।
[५९८ प्र.] भगवन्! आगमभावसामायिक का क्या स्वरूप है ?
[५९८ उ.] आयुष्मन् ! सामायिक पद के अर्थाधिकार का उपयोगयुक्त ज्ञायक आगम से भावसामायिक है ।
५९९. (अ) से किं तं नोआगमतो भावसामाइए ?
नोआगमतो भावसामाइए