________________
क्षपणा निरूपण
४२९
[५८८ उ.] आयुष्मन् ! भावक्षपणा दो प्रकार की है। यथा—१. आगम से, २. नोआगम से। ५८९. से किं तं आगमओ भावज्झवणा ? आगमओ भावज्झवणा झवणापयत्थाहिकारजाणए उवउत्ते । से तं आगमतो भावज्झवणा । [५८९ प्र.] भगवन्! आगमभावक्षपणा का क्या स्वरूप है ? [५८९ उ.] आयुष्मन् ! क्षपणा इस पद के अधिकार का उपयोगयुक्त ज्ञाता आगम से भावक्षपणा रूप है। ५९०. से किं तं णोआगमतो भावज्झवणा ? णोआगमो भावझवणा दुविहा पण्णत्ता । तं जहा—पसत्था य अप्पसत्था य । [५९० प्र.] भगवन् ! नोआगमभावक्षपणा का क्या स्वरूप है ?
[५९० उ.] आयुष्मन् ! नोआगमभावक्षपणा दो प्रकार की है। यथा—१. प्रशस्तभावक्षपणा, २. अप्रशस्तभावक्षपणा।
५९१. से किं तं पसत्था ?
पसत्था चउव्विहा पण्णत्ता । तं जहा–कोहज्झवणा माणज्झवणा मायज्झवणा लोभज्झवणा । से तं पसत्था ।
[५९१ प्र.] भगवन् ! प्रशस्तभावक्षपणा का क्या स्वरूप है ?
[५९१ उ.] आयुष्मन्! नोआगमप्रशस्तभावक्षपणा चार प्रकार की है। यथा—१. क्रोधक्षपणा, २. मानक्षपणा, ३. मायाक्षपणा और ४. लोभक्षपणा। यही प्रशस्तभावक्षपणा का स्वरूप है।
५९२. से किं तं अप्पसत्था ?
अप्पसत्था तिविहा पण्णत्ता । तं जहा—नाणज्झवणा दंसणज्झवणा चरित्तज्झवणा । से तं अप्पसत्था । से तं नोआगमतो भावझवणा । से तं भावज्झवणा । से तं झवणा । से तं ओहनिष्फण्णे ।
[५९२ प्र.] भगवन् ! अप्रशस्तभावक्षपणा का क्या स्वरूप है ?
[५९२ उ.] आयुष्मन् ! अप्रशस्तभावक्षपणा तीन प्रकार की कही गई है। यथा—१. ज्ञानक्षपणा, २. दर्शनक्षपणा, ३. चारित्रक्षपणा। यही अप्रशस्तभावक्षपणा है।
इस प्रकार से नोआगम भावक्षपणा, भावक्षपणा, क्षपणा और साथ ही ओघनिष्पन्ननिक्षेप का वर्णन पूर्ण हुआ।
विवेचन— प्रस्तुत सूत्रों में भावक्षपणा का विस्तार से वर्णन करके ओघनिष्पन्ननिक्षेप की वक्तव्यता की समाप्ति का उल्लेख किया है।
भावक्षपणा का वर्णन स्पष्ट और सुगम है लेकिन इतना विशेष है कि किसी-किसी प्रति में अनुयोगद्वारसूत्र के मूलपाठ में नोआगमभावक्षपणा के प्रशस्त प्रकार में ज्ञानक्षपणा, दर्शनक्षपणा, चारित्रक्षपणा ये तीन भेद एवं अप्रशस्त के रूप में क्रोध, मान, माया, लोभ क्षपणा ये चार भेद बताये हैं। लेकिन यहां उसके विपरीत भेद और नामों का उल्लेख किया है। जो उपर्युक्त सूत्र पाठ से स्पष्ट है।