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अनुयोगद्वारसूत्र की अपेक्षा समस्त द्रव्य आत्मभाव में तथा परसमवतार की अपेक्षा परभाव में रहते हैं। उदाहरणार्थ-स्तम्भ जैसे पर घर में भी रहता है और स्वस्वरूप में भी रहता है, ऐसा स्पष्ट दिखता है।
यद्यपि परसमवतार के दृष्टान्त रूप में प्रस्तुत 'कुण्डे बदराणि' उदाहरण उभयसमवतार का है क्योंकि जिस प्रकार बेर अपने से पर—भिन्न कुण्ड में रहते हैं वैसे ही आत्मभाव में भी रहते हैं, इसलिए यह केवल परसमवतार नहीं है। किन्तु केवल परभाव में रहने का कोई उदाहरण सम्भव न होने से आत्मभाव की विवक्षा न करके नाममात्र के लिए यहां उसका पृथक् निर्देश किया है। वास्तव में समवतार दो हैं—आत्मसमवतार और उभयसमवतार। जिसको स्वयं सूत्रकार स्पष्ट करते हैं
(२) अहवा जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वसमोयारे दुविहे पण्णत्ते । तं जहाआयसमोयारे य तदुभयसमोयारे य ।
चउसट्ठिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं बत्तीसियाए समोयरति आयभावे य । बत्तीसिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं सोलसियाए समोयरति आयभावे य । सोलसिया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं अट्ठभाइयाए समोयरति आयभावे य । अट्ठभाइया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं चउभाइयाए समोयरति आयभावे य । चउभाइया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं अद्धमाणीए समोयरइ आयभावे य । अद्धमाणी आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं माणीए समोयरति आयभावे य ।
से तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वसमोयारे । से तं नोआगमओ दव्वसमोयारे । से तं दव्वसमोयारे ।
[५३०-२] अथवा ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार दो प्रकार का है—आत्मसमवतार और तदुभयसमवतार। जैसे आत्मसमवतार से चतुष्षष्टिका आत्मभाव में रहती है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा द्वात्रिंशिका में भी और अपने निजरूप में भी रहती है। द्वात्रिंशिका आत्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में और उभयसमवतार की अपेक्षा षोडशिका में भी रहती है और आत्मभाव में भी रहती है।
षोडशिका आत्मसमवतार से आत्मभाव में समवतीर्ण होती है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा अष्टभागिका में भी तथा अपने निजरूप में भी रहती है।
अष्टभागिका आत्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में तथा तदुभयसमवतार की अपेक्षा चतुर्भागिका में भी समवतरित होती है और अपने निज स्वरूप में भी समवतरित होती है।
आत्मसमवतार की अपेक्षा चतुर्भागिका आत्मभाव में और तदुभयसमवतार से अर्धमानिका में समवतीर्ण होती है एवं आत्मभाव में भी।
आत्मसमवतार से अर्धमानिका आत्मभाव में एवं तदुभयसमवतार की अपेक्षा मानिका में तथा आत्मभाव में भी समवतीर्ण होती है।
यह ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार का वर्णन है। इस तरह नोआगमद्रव्यसमवतार और