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________________ ४०४ अनुयोगद्वारसूत्र दंसिज्जति— दृष्टान्त द्वारा सिद्धान्त को स्पष्ट करना । जैसे—यथा मछलियों को चलन में सहायक जल होता निदंसिज्जति— उपनय द्वारा अधिकृत विषय का स्वरूप निरूपण करना। जैसे—वैसे ही धर्मद्रव्य भी जीव और पुद्गलों को गति में सहायक है। उवदंसिजति— समस्त कथन का उपसंहार करके अपने सिद्धान्त की स्थापना करना। जैसे—इस प्रकार के स्वरूप वाले द्रव्य को धर्मास्तिकाय कहते हैं। परसमयवक्तव्यता निरूपण ५२३. से किं तं परसमयवत्तव्वया ? परसमयवत्तव्वया जत्थ णं परसमए आघविजति जाव उवदंसिजति । से तं परसमयवत्तव्वया । [५२३ प्र.] भगवन्! परसमयवक्तव्यता क्या है ? [५२३ उ.] आयुष्मन् ! जिस वक्तव्यता में परसमय अन्य मत के सिद्धान्त का कथन यावत् उपदर्शन किया जाता है, उसे परसमयवक्तव्यता कहते हैं। विवेचन— जिसमें स्वमत की नहीं किन्तु परसिद्धान्त की उसी रूप में व्याख्या की जाती है, जैसे सूत्रकृतांग के प्रथम अध्ययन में लोकायतिकों का सिद्धान्त स्पष्ट किया है संति पञ्चमहब्भूया, इहमेगेसि आहिया । पुढवी आऊ तेऊ (य) वाऊ आगास पंचमा ॥ ए ए पंच महब्भूया तेब्भो एगोत्ति आहिया । . अह तेसिं विणासेणं, विणासो होइ देहिणो ॥ नास्तिकों के मत के अनुसार सर्वलोकव्यापी पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये पांच महाभूत कहे गये हैं। इन पांच महाभूतों से जीव अव्यतिरिक्त अभिन्न है। जब ये पंच महाभूत शरीराकार परिणत होते हैं, तब इनसे जीव नाम पदार्थ उत्पन्न हो जाता है और इनके विनष्ट होने पर इनसे जन्य जीव का भी विनाश हो जाता है। उक्त प्रकार का कथन आर्हत दर्शन का नहीं किन्तु लोकायतिक मत प्रतिपादक होने से परसिद्धान्त है। इस तरह जिस वक्तव्यता में परसिद्धान्त की प्ररूपणा की जाती है, वह परसमयवक्तव्यता है। स्वसमय-परसमयवक्तव्यता ५२४. से किं तं ससमय-परसमयवत्तव्वया ? ससमय-परसमयवत्तव्वया जत्थ णं ससमए परसमए आघविजइ जाव उवदंसिजइ । से तं ससमयपरसमयवत्तव्वया । [५२४ प्र.] भगवन् ! स्वसमय-परसमयवक्तव्यता का क्या स्वरूप है ? [५२४ उ.] आयुष्मन् ! स्वसमय-परसमयवक्तव्यता इस प्रकार है—जिस वक्तव्यता में स्वसिद्धान्त और
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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