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प्रमाणाधिकारनिरूपण
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आदि दृष्टान्तत्रय से नयप्रमाण का वर्णन किया है। प्रस्थकदृष्टान्त द्वारा नयनिरूपण
४७४. से किं तं पत्थगदिटुंतेणं ?
पत्थगदिटुंतेणं से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्ते गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वदेजा—कत्थ भवं गच्छसि ? अविसुद्धो नेगमो भणति-पत्थगस्स गच्छामि । तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वइजा किं भवं छिंदसि ? विसुद्धतराओ नेगमो भणति-पत्थयं छिंदामि । तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वदेजा—किं भवं तच्छेसि ? विसुद्धतराओ णेगमो भणति-पत्थयं तच्छेमि । तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वदेजा किं भवं उक्किरसि ? विसुद्धतराओ णेगमो भणति–पत्थयं उक्किरामि । तं च केइ [वि] लिहमाणं पासेत्ता वदेज्जाकिं भवं [वि] लिहसि ? विसुद्धतराओ णेगमो भणति-पत्थयं [वि] लिहामि । एवं विसुद्धतराएस्स णेगमस्स नामाउडितओ पत्थओ ।
एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स चितो मिओ मिजसमारूढो पत्थओ । उजुसुयस्स पत्थयो वि पत्थओ मिजं पि से पत्थओ ।
तिण्हं सद्दणयाणं पत्थयाहिगारजाणओ पत्थओ जस्स वा वसेणं पत्थओ निप्फज्जइ । से तं पत्थयदिटुंतेणं ।
[४७४ प्र.] भगवन् ! प्रस्थक का दृष्टान्त क्या है ? '
[४७४ उ.] आयुष्मन् ! जैसे कोई पुरुष परशु (कुल्हाड़ी) लेकर वन की ओर जाता है। उसे देखकर किसी ने पूछा—आप कहां जा रहे हैं ?
तब अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उसने कहा—प्रस्थक लेने के लिए जा रहा हूं। फिर उसे वृक्ष को छेदन करते—काटते हुए देखकर कोई कहे—आप क्या काट रहे हैं ? तब उसने विशुद्धतर नैगमनय के मतानुसार उत्तर दिया—मैं प्रस्थक काट रहा हूं। तदनन्तर कोई उस लकड़ी को छीलते देखकर पूछे—आप यह क्या छील रहे हैं ? तब विशुद्धतर नैगमनय की अपेक्षा उसने कहा—प्रस्थक छील रहा हूं। तत्पश्चात् कोई काष्ठ के मध्य भाग को उत्कीर्ण करते देखकर पूछे—आप यह क्या उत्कीर्ण कर रहे हैं ? तब विशुद्धतर नैगमनय के अनुसार उसने उत्तर दिया—मैं प्रस्थक उत्कीर्ण कर रहा हूं। फिर कोई उस उत्कीर्ण काष्ठ पर प्रस्थक का आकार लेखन –अंकन करते देखकर कहे—आप यह क्या लेखन कर रहे हैं ? तो विशुद्धतर नैगमनयानुसार उसने उत्तर दिया—प्रस्थक अंकित कर रहा हूं।
इसी प्रकार से जब तक संपूर्ण प्रस्थक निष्पन्न—तैयार न हो जाये, तब तक प्रस्थक सम्बन्धी प्रश्नोत्तर करना
चाहिए।
इसी प्रकार व्यवहारनय से भी जानना चाहिए। संग्रहनय के मत से धान्यपरिपूरित प्रस्थक को ही प्रस्थक कहते हैं।