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अनुयोगद्वारसूत्र
४. समस्त रूपी और अरूपी पदार्थों को सामान्य रूप से जानने वाले परिपूर्ण दर्शन को केवलदर्शन कहते हैं। यह केवलदर्शनावरणकर्म के क्षय से आविर्भूत लब्धि से संपन्न जीव को मूर्त और अमूर्त समस्त द्रव्यों और उनकी समस्त पर्यायों में होता है।
___ अवधिदर्शन की तरह मन:पर्यायदर्शन को पृथक् न मानने का कारण यह है कि जिस प्रकार मनःपर्यायज्ञानी भूत और भविष्य को जानता तो है पर देखता नहीं तथा वर्तमान में भी मन के विषय को विशेषाकार से ही जानता है। अत: सामान्यावलोकनपूर्वक प्रवृत्ति न होने से मनःपर्यायदर्शन नहीं माना है। यह दर्शनगुणप्रमाण की वक्तव्यता का सारांश है। चारित्रगुणप्रमाण
४७२. से किं तं चरित्तगुणप्पमाणे ?
चरित्तगुणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा सामाइयचरित्तगुणप्पमाणे छेदोवट्ठावणियतरित्तगुणप्पमाणे परिहारविसुद्धियचरित्तगुणप्पमाणे सुहुमसंपरायचरित्तगुणप्पमाणे अहक्खायचरितगुणप्पमाणे ।
सामाइयचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा इत्तरिए य आवकहिए य । छेदोवट्ठावणियचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते । तं जहां सातियारे य निरतियारे य ।
परिहारविसुद्धियचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—णिव्विसमाणए य णिविट्ठकायिए य ।
सुहुमसंपरायचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा संकिलिस्समाणयं च विसुज्झमाणयं च । ___अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—पडिवाई य अपडिवाई य-छउमत्थे य केवलिए य । से तं चरित्तगुणप्पमाणे । से तं जीवगुणप्पमाणे । से तं गुणप्पमाणे ।
[४७२ प्र.] भगवन् ! चारित्रगुणप्रमाण किसे कहते हैं ?
[४७२ उ.] आयुष्मन् ! चारित्रगुणप्रमाण के पांच भेद हैं। वे इस प्रकार—१. सामायिकचारित्रगुणप्रमाण, २. छेदोपस्थापनीयचारित्रगुणप्रमाण, ३. परिहारविशुद्धिचारित्रगुणप्रमाण, ४. सूक्ष्मसंपरायचारित्रगुणप्रमाण, ५. यथाख्यातचारित्रगुणप्रमाण । इनमें से
सामायिकचारित्रगुणप्रमाण दो प्रकार का कहा गया है—१. इत्वरिक और २. यावत्कथिक। छेदोपस्थापनीयचारित्रगुणप्रमाण के दो भेद हैं, यथा— १. सातिचार और २. निरतिचार। परिहारविशुद्धिकचारित्रगुणप्रमाण दो प्रकार का है—१. निर्विश्यमानक, २. निर्विष्टकायिक। सक्ष्मसंपरायचारित्रगणप्रमाण दो प्रकार का कहा गया है—१. संक्लिश्यमानक और २. विशद्यमानक।
यथाख्यातचारित्रगुणप्रमाण के दो भेद हैं । वे इस प्रकार—१. प्रतिपाती और २. अप्रतिपाती। अथवा १. छाद्मस्थिक और २. कैवलिक।
इस प्रकार से चारित्रगुणप्रमाण का स्वरूप जानना चाहिए। इसका वर्णन करने पर जीव गुणप्रमाण तथा