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________________ ३०७ प्रमाणाधिकारनिरूपण [३९२ उ.] गौतम! क्षेत्रपल्योपम दो प्रकार का कहा है—सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम। ३९३. तत्थ णं जे से सहमे से ठप्पे । [३९३] उनमें से सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम स्थापनीय है। अर्थात् उसका यहां वर्णन नहीं किया जाएगा। किन्तु ३९४. तत्थ णं जे से वावहारिए से जहानामए पल्ले सिया-जोयणं आयामविक्खंभेणं, जोयणं उर्दू उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले एगाहियबेहिय-तेहिय० जाव भरिए वालग्गकोडीणं । ते णं वालग्गा णो अग्गी डहेजा, णो वातो हरेजा, जाव णो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा । जे णं तस्स पल्लस्स आगासपदेसा तेहिं वालग्गेहिं तेहिं अप्फन्ना ततो णं समए समए गते एगमेगं आगासपएसं अवहाय जावतिएणं कालेणं से पल्ले खोणे जाव निट्ठिए भवइ । से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे । एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी हवेज दसगुणिया । ___तं वावहारियस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥ ११३॥ [३९४] उन दोनों में से व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिए जैसे कोई एक योजन आयाम-विष्कम्भ और एक योजन ऊंचा तथा कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला धान्य मापने के समान पल्य हो। उस पल्य को दो, तीन यावत् सात दिन के उगे बालानों की कोटियों से इस प्रकार से भरा जाए कि उन बालारों को अग्नि जला न सके, वायु उड़ा न सके आदि यावत् उनमें दुर्गन्ध भी पैदा न हो। तत्पश्चात् उस पल्य के जो आकाशप्रदेश बालारों से व्याप्त हैं, उन प्रदेशों में से समय-समय (प्रत्येक समय) एक-एक आकाशप्रदेश का अपहरण किया जाए–निकाला जाए तो जितने काल में वह पल्य खाली यावत् विशुद्ध हो जाए, वह एक व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम है। इस (व्यावहारिक क्षेत्र-) पल्योपम की दस गुणित कोटाकोटि का एक व्यावहारिक क्षेत्रसागरोपम का परिमाण होता है। अर्थात् दस कोटाकोटि व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपमों का एक व्यावहारिक क्षेत्र सागरोपम होता है। ११३ विवेचन— यहां व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम का प्रमाण बताकर व्यावहारिक क्षेत्र सागरोपम का स्वरूप बताया पूर्व में जो व्यावहारिक उद्धारपल्योपम और अद्धापल्योपम का स्वरूप बताया है, उन्हीं के समान बालाग्रकोटियों से पल्य को भरने की प्रक्रिया यहां भी ग्रहण की गई है। किन्तु उनसे इसमें अन्तर यह है कि पूर्व के दोनों पल्यों में समय की मुख्यता है, जबकि यहां क्षेत्र मुख्य है। इस प्रकार से व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम और क्षेत्रसागरोपम का स्वरूप बतलाने के बाद अब उसके प्रयोजन का कथन करते हैं। ३९५. एएहिं वावहारिएहिं खेत्तपलिओवम-सागरोबमेहि किं पयोयणं ? एएहिं० नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं तु पण्णवणा पण्णविज्जइ । से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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