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________________ ३०४ अनुयोगद्वारसूत्र [३९१-६ उ.] गौतम! जघन्य स्थिति सात सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की है। (७) एवं कप्पे कप्पे केवतिकालं ठिती पन्नत्ता ? गो० ! एवं भाणियव्वं लंतए जह० दस सागरोवमाइं उक्को० चोद्दस सागरोवमाइं । महासुक्के जह० चोद्दस सागरोवमाइं उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाई । सहस्सारे जह० सत्तरस सागरोवमाई उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं । आणए जह० अट्ठारस सागरोवमाई उक्को० एक्कूणवीसं सागरोवमाइं । पाणए जह० एक्कूणवीसं सागरोवमाई उक्को० वीसं सागरोवमाई । आरणे जह० वीसं सागरोवमाइं उक्को० एक्कवीसं सागरोवमाइं । अच्चुए जह० एक्कवीसं सागरोवमाई उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई । [३९१-७ प्र.] भगवन्! इसी प्रकार प्रत्येक कल्प की कितने काल की स्थिति कही गई है ? [३९१-७ उ.] गौतम! वह इस प्रकार कहना जानना चाहिएलांतककल्प में देवों की जघन्य स्थिति दस सागरोपम, उत्कृष्ट स्थिति चौदह सागरोपम की होती है। महाशुक्रकल्प के देवों की जघन्य स्थिति चौदह सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति सत्रह सागरोपम की है। सहस्रारकल्प के देवों की जघन्य स्थिति सत्रह सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति अठारह सागरोपम की है। आनतकल्प में जघन्य स्थिति अठारह सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति उन्नीस सागरोपम की है। प्राणतकल्प में जघन्य स्थिति उन्नीस सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति बीस सागरोपम की है। आरणकल्प के देवों की जघन्य स्थिति बीस सागरोपम और उत्कृष्ट इक्कीस सागरोपम की स्थिति है। अच्युतकल्प के देवों की जघन्य स्थिति इक्कीस सागरोपम की और उत्कृष्ट बाईस सागरोपम की स्थिति होती है। विवेचन— पूर्व में सामान्य से वैमानिक देवों की स्थिति बताने के बाद यहां विशेष रूप से स्थिति का निर्देश किया है। वैमानिक देवों के छब्बीस लोक हैं। उनमें सौधर्म आदि अच्युत पर्यन्त बारह देवलोक कल्पसंज्ञक हैं। इनकी सामान्य से जघन्य स्थिति एक पल्योपम की और उत्कृष्ट स्थिति बाईस सागरोपम की है। देवियों की जघन्य स्थिति एक पल्य की और उत्कृष्ट स्थिति पचपन पल्योपम की है। किन्तु दूसरे ईशानकल्प से ऊपर देवियां उत्पन्न नहीं होती हैं, इसलिए दूसरे कल्प तक ही देवियों की स्थिति का कथन किया है। इनके दो भेद हैं—परिगृहीता और अपरिगृहीता। इन दोनों की जघन्य स्थिति प्रथम देवलोक में एक पल्योपम की और दूसरे देवलोक में साधिक एक पल्योपम की है, लेकिन प्रथम देवलोक की परिगृहीता देवियों की उत्कृष्ट स्थिति सात पल्योपम की और अपरिगृहीता की पचास पल्य की होती है। द्वितीय देवलोक की परिगृहीता देवियों की उत्कृष्ट स्थिति नौ पल्योपम की अपरिगृहीताओं की पचपन पल्योपम की होती है। __ईशानकल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति सौधर्मकल्प के देवों से कुछ अधिक दो सागरोपम और सनत्कुमारकल्प की अपेक्षा माहेन्द्रकल्प के देवों की उत्कृष्ट स्थिति साधिक सात सागरोपम है। लेकिन इसके बाद ब्रह्मलोक से लेकर अच्युत कल्प तक पूर्व की उत्कृष्ट स्थिति उत्तर की जघन्य स्थिति जानना चाहिए।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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