________________
३००
अनुयोगद्वारसूत्र (२) चंदविमाणाणं भंते ! देवाणं जाव जहन्नेणं चउभागपलिओवमं उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्सेहिं अब्भहियं ।
चदंविमाणाणं भंते ! देवीणं जाव जहन्नेणं चउभागपलिओवमं उक्को० अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं ।
[३९०-२ प्र.] भगवन् ! चंद्रविमानों के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३९०-२ उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की होती है।
[प्र.] भगवन् ! चंद्रविमानों की देवियों की स्थिति कितने काल की प्रतिपादन की गई है ?
[उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट स्थिति पचास हजार वर्ष अधिक पल्योपम की होती है।
(३) सूरविमाणाणं भंते ! देवाणं जाव जह० चउभागपलिओवमं उक्को० पलिओवमं वाससहस्साहियं ।
सूरविमाणाणं भंते ! देवीणं जाव जह० चउभागपलिओवमं उक्को० अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससएहिं अधियं ।
[३९०-३ प्र.] भगवन् ! सूर्यविमानों के देवों की स्थिति कितने काल की बताई है ?
[३९०-३ उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम का चतुर्थांश और उत्कृष्ट स्थिति एक हजार वर्ष अधिक पल्योपम की होती है।
[प्र.] भगवन् ! सूर्यविमानों की देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[उ.] गौतम! सूर्यविमानों की देवियों की जघन्य स्थिति पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट स्थिति पांच सौ ' वर्ष अधिक अर्धपल्योपम की होती है।
(४) गहविमाणाणं भंते ! देवाणं जाव जहन्नेणं चउभागपलिओवमं उक्को० पलिओवमं । गहविमाणाणं भंते ! देवीणं जाव जह० चउभागपलिओवमं उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं । [३९०-४ प्र.] भगवन् ! ग्रहविमानों के देवों की स्थिति कितने काल की कही है ? [३९०-४ उ.] गौत्तम ! जघन्य स्थिति पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम की है। [प्र.] भगवन् ! ग्रहविमानों की देवियों की स्थिति कितने काल की बताई है ? [उ.] गौतम! जघन्य स्थिति पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण अर्धपल्योपम का है।
(५) णक्खत्तविमाणाणं भंते ! देवाणं जाव गोयमा ! जह० चउभागपलिओवमं उक्को० अद्धपलिओवमं
- णक्खत्तविमाणाणं भंते ! देवीणं जाव गो! जहन्नेणं चउभागपलिओवमं उक्को० सातिरेगं चउभागपलिओवमं ।
[३९०-५ प्र.] भगवन ! नक्षत्रविमानों के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?