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अनुयोगद्वारसूत्र अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं सत्तवाससहस्साई ।
सुहुमआउकाइयाणं ओहियाणं अपजत्तयाणं तिण्ह वि जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ।
बादरआउकाइयाणं जाव गो० ! जहा ओहियाणं । अपजत्तयबादरआउकाइयाणं जाव गो० ! जह० अंतोमुहत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ।
पजत्तयबादरआउ० जाव गो० । जह० अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं सत्तवाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई ।
[३८५-२] इसी प्रकार से शेष कायिकों (अप्कायिक से वनस्पतिकायिक पर्यन्त) जीवों की स्थिति के विषय में भी प्रश्न कहना चाहिए। अर्थात् जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति जानने के लिए प्रश्न किये हैं, उसी प्रकार से शेष कायिक जीवों के विषय में प्रश्न करना चाहिए। उत्तर इस प्रकार है
गौतम ! अप्कायिक जीवों की औधिक जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति सात हजार वर्ष की है।
सामान्य रूप में सूक्ष्म अप्कायिक तथा अपर्याप्त और पर्याप्त अप्कायिक जीवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है।
गौतम ! बादर अप्कायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति सामान्य अप्कायिक जीवों के तुल्य जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष है।
गौतम ! अपर्याप्त बादर अप्कायिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है।
__ गौतम ! पर्याप्तक बादर अप्कायिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त न्यून सात हजार वर्ष की है।
(३) तेउकाइयाणं भंते ! जाव गो० ! जह० अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिण्णि राइंदियाइं ।
सुहुमतेउकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्तयाणं पजत्तयाण य तिण्ह वि जह० अंतो० उक्को० अंतो० ।
बादरतेउकाइयाणं भंते ! जाव गो० ! जह० अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि राइंदियाई । अपजत्तयबायरतेउकाइयाणं जाव गो० ! जह० अंतो० उक्कोसेणं अंतो० ।
पज्जत्तयबायरतेउकाइयाणं जाव गो० ! जह० अंतो० उक्कोसेणं तिण्णि राइंदियाई अंतोमुहुत्तूणाई।
[३८५-३ प्र.] भगवन् ! (सामान्य रूप में) तेजस्कायिक जीवों की कितनी स्थिति कही गई है ?
[३८५-३ उ.] आयुष्मन् ! सामान्य तेजस्कायिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन रात-दिन की बताई है।
औधिक सूक्ष्म तेजस्कायिक और पर्याप्त, अपर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक की जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है।