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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण २८३ एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी हवेज दसगुणिया । तं सुहुमस्स अद्धासागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥ ११०॥ [३८१ प्र.] भगवन् ! सूक्ष्म अद्धापल्योपम का क्या स्वरूप है ? [३८१ उ.] आयुष्मन् ! सूक्ष्म अद्धापल्योपम का स्वरूप इस प्रकार है—एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा, एक योजन ऊंचा एवं साधिक (कुछ न्यून षष्ठ भाग अधिक) तीन योजन की परिधि वाला एक पल्य हो । उस पल्य को एक-दो-तीन दिन के यावत् बालाग्र कोटियों से पूरी तरह भर दिया जाए। फिर उनमें से एक-एक बालाग्र के ऐसे असंख्यात असंख्यात खण्ड किये जाएं कि वे खण्ड दृष्टि के विषयभूत होने वाले पदार्थों की अपेक्षा असंख्यात भाग हों और सूक्ष्म पनक जीव की शरीरावगाहना से असंख्यात गुणे अधिक हों। उन खण्डों में से सौ-सौ वर्ष के पश्चात् एक-एक खण्ड को अपहत करने—निकालने पर जितने समय में वह पल्य बालाग्रखण्डों से विहीन, नीरज, संश्लेषरहित और संपूर्ण रूप से निष्ठित खाली हो जाए, उतने काल को सूक्ष्म अद्धापल्योपम कहते हैं। __इस अद्धापल्योपम को दस कोटाकोटि से गुणा करने से अर्थात् दस कोटाकोटि सूक्ष्म अद्धापल्योपमों का एक सूक्ष्म अद्धासागरोपम होता है । ११० ।। ३८२. एएहिं सुहमेहिं अद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं किं पयोयणं ? एतेहिं सुहुमेहिं अद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं रतिय-तिरियजोणिय-मणूस-देवाणं आउयाई मविजंति । [३८२ प्र.] भगवन् ! इस सूक्ष्म अद्धापल्योपम और सूक्ष्म अद्धासागरोपम से किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ? [३८२ उ.] आयुष्मन् ! इस सूक्ष्म अद्धापल्योपम और सूक्ष्म अद्धासागरोपम से नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों के आयुष्य का प्रमाण जाना जाता है। विवेचन— यहां सूक्ष्म अद्धापल्योपम और सूक्ष्म अद्धासागरोपम का स्वरूप बताया है। व्यावहारिक अद्धापल्योपम से इस सूक्ष्म अद्धापल्योपम के वर्णन में यह अन्तर है कि पल्य में भरे बालागों के असंख्यातअसंख्यात खण्ड बुद्धि से कल्पित करके उन खण्डों को सौ-सौ वर्ष बाद पल्य में से निकाला जाता है। जितने काल में वे बालाग्रखण्ड निकल जाते हैं उतने काल को एक सूक्ष्म अद्धापल्योपम कहते हैं । व्यावहारिक अद्धापल्योपम में संख्यात करोड़ वर्ष और सूक्ष्म अद्धापल्योपम में असंख्यात करोड़ वर्ष होते हैं। . इसके द्वारा नारक आदि चातुर्गतिक जीवों की भवस्थिति और साथ में कायस्थिति, कर्मस्थिति आदि का मान ज्ञात किया जाता है। अतएव अब चतुर्गति के जीवों की भवस्थिति—आयुष्य का प्रमाण निरूपण करते हैं। नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव ये चार गतियां हैं। अतः इसी क्रम से उनकी स्थिति का निर्देश करने के लिए जिज्ञासु प्रश्न करता हैनारकों की स्थिति ३८३. (१) णेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गो० ! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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