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प्रमाणाधिकारनिरूपण
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नामों में अन्तर है।
दिगम्बर साहित्य में भी कालगणना के प्रमाण का निरूपण किया गया है। यहां किये गये वर्णन से उस वर्णन में समानता अधिक है, विभिन्नता कतिपय अंशों में ही है। साथ ही वहां भी संज्ञाओं के क्रम एवं नामों में अन्तर पाया जाता है। अतएव परस्पर तुलना करने की दृष्टि से दिगम्बर साहित्यगत वर्णन का सारांश परिशिष्ट में देखिए।
इस प्रकार व्यवहार में जितनी राशि की गणना की जा सकती है, उतना ही गणित का विषय है। इसके बाद गणना करने के लिए उपमा का आश्रय लिया जाता है। औपमिक कालप्रमाणनिरूपण
३६८. से किं तं ओवमिए ?
ओवमिए दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—पलिओवमे य सागरोवमे य । [३६८ प्र.] भगवन् ! औपमिक (काल) प्रमाण क्या है ? अर्थात् औपमिक (काल) किसे कहते हैं ?
[३६८ उ.] आयुष्मन् ! औपमिक (काल) प्रमाण दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार—१. पल्योपम और २. सागरोपम।
विवेचन- औपमिक काल उसे कहते हैं जो गणित का विषय न हो, केवल उपमा के द्वारा जिसका वर्णन किया जाए। वह दो प्रकार का है—पल्योपम और सागरोपम । पल्य (धान्य को भरने का गड्ढा) की उपमा के द्वारा जिस कालमान का वर्णन किया जाए उसे पल्योपम और सागर (समुद्र) की उपमा द्वारा जिसका स्वरूप समझाया जाए उसे सागरोपम काल कहते हैं। पल्योपम-सागरोपमप्ररूपण
३६९. से किं तं पलिओवमे ?
पलिओवमे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा—उद्धारपलिओवमे य अद्धापलिओवमे य खेत्तपलिओवमे य ।
[३६९ प्र.] भगवन् ! पल्योपम किसे कहते हैं ?
[३६९ उ.] आयुष्मन् ! पल्योपम के तीन प्रकार हैं—१. उद्धारपल्योपम, २. अद्धापल्योपम और ३. क्षेत्रपल्योपम।
३७०. से किं तं उद्धारपलिओवमे ? उद्धारपलिओवमे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—सुहुमे य वावहारिए य । [३७० प्र.] भगवन् ! उद्धारपल्योपम किसे कहते हैं ?
[३७० उ.] आयुष्मन् ! उद्धारपल्योपम दो प्रकार से वर्णित किया गया है, यथा—सूक्ष्म उद्धारपल्योपम और व्यावहारिक उद्धारपल्योपम।
३७१. तत्थ णं जे से सुहुमे से ठप्पे ? [३७१] इन दोनों में सूक्ष्म उद्धारपल्योपम अभी स्थापनीय है। अर्थात् उसकी यहां व्याख्या न करके