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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण २७३ (प्रहरणविशेष), मुद्गर मुष्टिकामुष्टिबन्ध आदि के व्यायामों के अभ्यास, आघात-प्रतिघातों से सुदृढ़-सघन शारीरिक अवयव वाला, सहज आत्मिक-मानसिक बलसम्पन्न, कूदना, तैरना, दौड़ना आदि व्यायामों से अर्जित सामर्थ्य-शक्ति से सम्पन्न, छेक (कार्यसिद्धि के उपाय का ज्ञाता), दक्ष, प्रतिष्ठप्रवीण, कुशल (विचारपूर्वक कार्य करने वाला), मेधावी (बुद्धिमान्), निपुण (चतुर), अपनी शिल्पकला में निष्णात, तुन्नवायदारक. (दर्जी का पुत्र) एक बड़ी सूती अथवा रेशमी शाटिका (साड़ी) को लेकर अतिशीघ्रता से एक हाथ प्रमाण फाड़ देता है। ___ [प्र.] भगवन् ! तो जितने काल में उस दर्जी के पुत्र ने शीघ्रता से उस सूती अथवा रेशमी शाटिका को एक हाथ प्रमाण फाड़ दिया है, क्या उतने काल को 'समय' कहते हैं ? [उ.] आयुष्मन् ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् वह समय का प्रमाण नहीं है। [प्र.] क्यों नहीं है ? [उ.] क्योंकि संख्यात तंतुओं के समुदाय रूप समिति के संयोग से एक सूती शाटिका अथवा रेशमी शाटिका निष्पन्न होती है—बनती है। अतएव जब तक ऊपर का तन्तु छिन्न न हो तब तक नीचे का तन्तु छिन्न नहीं हो सकता। अत: ऊपर के तन्तु के छिदने का काल दूसरा है और नीचे के तन्तु के छिदने का काल दूसरा है। इसलिए वह एक हाथ प्रमाण शाटिका के फटने का काल समय नहीं है। इस प्रकार से प्ररूपणा करने पर शिष्य ने पुनः प्रश्न पूछा [प्र.] भदन्त ! जितने काल में दर्जी के पुत्र ने उस सूती शाटिका अथवा रेशमी शाटिका के ऊपर के तन्तु का छेदन किया, क्या उतना काल समय है ? [उ.] उतना काल समय नहीं है। [प्र.] क्यों नहीं है ? [उ.] क्योंकि संख्यात पक्ष्मों (सूक्ष्म अवयवों रेशाओं) के समुदाय रूप समिति के सम्यक् समागम से एक तन्तु निष्पन्न होता है—निर्मित होता है। इसलिए ऊपर के पक्ष्म के छिन्न न होने तक नीचे का पंक्ष्म छिन्न नहीं हो सकता है। अन्य काल में ऊपर का पक्ष्म और अन्य काल में नीचे का पक्ष्म छिन्न होता है। इसलिए उसे समय नहीं कहते हैं। इस प्रकार की प्ररूपणा करने वाले गुरु से शिष्य ने पुनः निवेदन किया [प्र.] जिस काल में उस दर्जी के पुत्र ने उस तन्तु के उपरिवर्ती पक्ष्म का छेदन किया तो क्या उतने काल को समय कहा जाए? [उ.] उतना काल भी समय नहीं है। [प्र.] क्यों नहीं है ? [उ.] इसका कारण यह है कि अनन्त संघातों के समुदाय रूप समिति के संयोग से पक्ष्म निर्मित होता है, अत: जब तक उपरिवर्ती संघात पृथक् न हो, तब तक अधोवर्ती संघात पृथक् नहीं होता है। उपरिवर्ती संघात के पृथक् होने का काल अन्य है और अधोवर्ती संघात के पृथक् होने का काल अन्य है। इसलिए उपरितन पक्ष्म के छेदन का काल समय नहीं है। आयुष्मन् ! समय इससे भी अतीव सूक्ष्मतर कहा गया है। विवेचन- प्रस्तुत सूत्र में समय का स्वरूप स्पष्ट किया है। जिस प्रकार पुदगल द्रव्य के अविभाज्य चरम
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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