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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण इस प्रकार तिर्यंच पंचेन्द्रियों के छत्तीस अवगाहनास्थानों का जघन्य और उत्कृष्ट प्रमाण जानना चाहिए। मनुष्यगति- अवगाहनानिरूपण २६१ ३५२. (१) मणुस्साणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नता ? गोयमा ! जहन्त्रेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई । [३५२-१ प्र.] भगवन् ! मनुष्यों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ? [३५२-१ उ.] गौतम ! (सामान्य रूप में) मनुष्यों की अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति है । (२) सम्मुच्छिम जाव गोयमा ! जहन्त्रेणं अंगु० असं०, उक्को० अंगु० असं० । [३५२-२ प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम मनुष्यों की अवगाहना कितनी है ? [३५२-२ उ.] गौतम ! सम्मूच्छिम मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। (३) गब्भवक्कंतियमणुस्साणं जाव गोयमा ! जह० अंगु० असं०, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई । अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा, गो० ! जह० अंगु० असं० उक्कोसेणं वि अंगु० असं० । पज्जत्तयग० पुच्छा गो० ! जह० अंगु० असंखे०, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई । [३५२-३ प्र.] भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्त मनुष्यों की अवगाहना की पृच्छा है ? [ ३५२-३ उ.] गौतम ! सामान्य रूप में गर्भज मनुष्यों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति प्रमाण है । [प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त मनुष्यों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] उनकी जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। [प्र.] भगवन् ! पर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों की अवगाहना का प्रमाण कितना है ? [उ.] गौतम ! उनकी जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट अवगाहना तीन गव्यूति प्रमाण है। विवेचन प्रस्तुत प्रश्नोत्तरों में मनुष्यों की शरीरावगाहना का प्रमाण बतलाया है। मनुष्यों के पांच अवगाहनास्थान है—१. सामान्य मनुष्य, २. सम्मूच्छिम मनुष्य, ३. गर्भज मनुष्य, ४. पर्याप्त गर्भज मनुष्य और ५. अपर्याप्त गर्भज मनुष्य। सम्मूच्छिम तिर्यंचों की तरह सम्मूच्छिम मनुष्यों में अपर्याप्त और पर्याप्त ये दो विकल्प नहीं होते । सम्मूच्छिम मनुष्य गर्भज मनुष्यों के शुक्र, शोणित आदि में ही उत्पन्न होते हैं और वे अपर्याप्त अवस्था में ही मर जाते हैं। अत: उनमें पर्याप्त, अपर्याप्त विकल्प संभव न होने से तज्जन्य अवगाहनास्थान भी नहीं बताये हैं । सामान्य पद में मनुष्यो की जो उत्कृष्ट अवगाहना तीन गव्यूति प्रमाण कही गई है, वह देवकुरु आदि के
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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