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अनुयोगद्वारसूत्र अपर्याप्त (चतुरिन्द्रिय जीवों) की जघन्य एवं उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र है। पर्याप्तकों की जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग एवं उत्कृष्टतः चार गव्यूत प्रमाण है।
विवेचन- चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना का चार गव्यूत प्रमाण अढ़ाई द्वीप से बाहर के भ्रमर आदि चतुरिन्द्रिय जीवों की अपेक्षा से बताया गया है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों की शरीरावगाहना ।
३५१. (१) पंचेंदियतिरक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं ।
[३५१-१ प्र.] भगवन् ! तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों की अवगाहना कितनी है ?
[३५१-१ उ.] गौतम ! (सामान्य रूप में तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों की) जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण है।
(२) जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा ! एवं चेव । सम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियाणं एवं चेव ।
अपजत्तगसम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियाणं पुच्छा, जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं. उक्कोसेणं वि अंगुलस्स असं० ।
पजत्तयसम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियाणं पुच्छा, जहन्नेणं अंगु० असंखे० उक्कोसेणं जोयणसहस्सं ।
गब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियाणं पुच्छा, गो० ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं ।
अपजत्तयाणं पुच्छा, गो० ! जह० अंगु० असं० उक्कोसेणं अंगु० असं० । पजत्तयाणं पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंगु० असंखे०, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । [३५१-२ प्र.] भगवन् ! जलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना के विषय में पृच्छा है ?
[३५१-२ उ.] गौतम ! इसी प्रकार है। अर्थात् जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की है।
[प्र.] सम्मूच्छिम जलचरतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना के लिए जिज्ञासा है ?
[उ.] गौतम ! सम्मूछिम जलचरतिर्यंचयोनिकों की जधन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की जानना चाहिए।
[प्र.] अपर्याप्त सम्मूछिम जलचरतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है ?
[उ.] गौतम ! उनकी (अपर्याप्त सम्मूछिम जलचरतिर्यंचयोनिकों की) जघन्य शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग है और उत्कृष्ट अवगाहना भी अंगुल के असंख्यातवें भाग है।
[प्र.] भगवन् ! पर्याप्त सम्मूछिम जलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण है।