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________________ २५४ अनुयोगद्वारसूत्र अपर्याप्त (चतुरिन्द्रिय जीवों) की जघन्य एवं उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र है। पर्याप्तकों की जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग एवं उत्कृष्टतः चार गव्यूत प्रमाण है। विवेचन- चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना का चार गव्यूत प्रमाण अढ़ाई द्वीप से बाहर के भ्रमर आदि चतुरिन्द्रिय जीवों की अपेक्षा से बताया गया है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों की शरीरावगाहना । ३५१. (१) पंचेंदियतिरक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । [३५१-१ प्र.] भगवन् ! तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों की अवगाहना कितनी है ? [३५१-१ उ.] गौतम ! (सामान्य रूप में तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों की) जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण है। (२) जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा ! एवं चेव । सम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियाणं एवं चेव । अपजत्तगसम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियाणं पुच्छा, जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं. उक्कोसेणं वि अंगुलस्स असं० । पजत्तयसम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियाणं पुच्छा, जहन्नेणं अंगु० असंखे० उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । गब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियाणं पुच्छा, गो० ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । अपजत्तयाणं पुच्छा, गो० ! जह० अंगु० असं० उक्कोसेणं अंगु० असं० । पजत्तयाणं पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंगु० असंखे०, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । [३५१-२ प्र.] भगवन् ! जलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना के विषय में पृच्छा है ? [३५१-२ उ.] गौतम ! इसी प्रकार है। अर्थात् जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की है। [प्र.] सम्मूच्छिम जलचरतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना के लिए जिज्ञासा है ? [उ.] गौतम ! सम्मूछिम जलचरतिर्यंचयोनिकों की जधन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की जानना चाहिए। [प्र.] अपर्याप्त सम्मूछिम जलचरतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! उनकी (अपर्याप्त सम्मूछिम जलचरतिर्यंचयोनिकों की) जघन्य शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग है और उत्कृष्ट अवगाहना भी अंगुल के असंख्यातवें भाग है। [प्र.] भगवन् ! पर्याप्त सम्मूछिम जलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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