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अनुयोगद्वारसूत्र [३४९-१ उ.] गौतम ! (पृथ्वीकायिक जीवों की शरीरावगाहना) जघन्य भी अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इसी प्रकार सामान्य रूप से सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की और (विशेष रूप से) सूक्ष्म अपर्याप्त और पर्याप्त पृथ्वीकायिक जीवों की तथा सामान्यतः बादर पृथ्वीकायिकों एवं विशेषतः अपर्याप्त और पर्याप्त पृथ्वीकायिकों की यावत् अपर्याप्त पर्याप्त बादर वायुकायिक जीवों की शरीरावगाहना जानना चाहिए।
(२) वणस्सइकाइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजड़भागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं ।
सुहुमवणस्सइकाइयाणं ओहियाणं १ अपजत्तयाणं २ पज्जत्तगाणं ३ तिण्ह वि जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं, उक्कोसेणं वि अंगुलस्स असंखेजतिभागं ।
बादरवणस्सतिकाइयाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं; अपज्जत्तयाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं वि अंगुलस्स असंखेजइभाग; पजत्तयाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं ।
[३४९-२ प्र.] भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीवों की शरीरावगाहना कितनी है ? [३४९-२ उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक हजार योजन की
सामान्य रूप में सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और (विशेष रूप में) अपर्याप्त तथा पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है।
औधिक रूप से बादर वनस्पतिकायिक जीवों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट साधिक एक हजार योजन प्रमाण है। विशेष—अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है।
पर्याप्त (बादर वनस्पतिकायिक जीवों) की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट साधिक एक हजार योजन प्रमाण होती है।
__ विवेचन-- प्रस्तुत सूत्र में तिर्यंचगति के त्रस और स्थावर रूप दो भेदों में से पृथ्वीकायिक आदि पांच स्थावर जीवों की शरीरावगाहना का प्रमाण बतलाया है। द्वीन्द्रिय जीवों की अवगाहना
३५०. (१) एवं बेइंदियाणं पुच्छा भाणियव्वा—बेइंदियाणं पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाई अपजत्तयाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेजइभाग; पजत्तयाणं ज० अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाई।
१.
असंख्यात के असंख्यात भेद होने से जघन्य की अपेक्षा उत्कृष्ट अवगाहना अधिक है। यही अपेक्षा सर्वत्र जानना चाहिए।