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अनुयोगद्वारसूत्र
वर्ष), ३. दुषमासुषमा (४२०० वर्ष न्यून एक कोडाकोडी सागरोपम), ४. सुषमादुषमा (दो कोडाकोडी सागरोपम), ५. सुषमा (तीन कोडाकोडी सागरोपम ), ६. सुषमासुषमा (चार कोडाकोडी सागरोपम) । ये उत्सर्पिणी काल के छह आरों के नाम हैं। इनके नामक्रम से यह स्पष्ट हो जाता है कि पहले आरे से लगाकर उत्तरोत्तर सुख के साधनों की वृद्धि होती जाती है। इसके विपरीत अवसर्पिणी काल के भेदों के नाम इस प्रकार हैं - १. सुषमासुषमा (४ कोडाकोडी सागरोपम), २. सुषमा (तीन कोडाकोडी सागरोपम), ३. सुषमादुषमा (दो कोडाकोडी सागरोपम ), ४. दुषमसुषमा (४२००० वर्ष न्यून एक कोडाकोडी सागरोपम ), ५. दुषमा (२१००० वर्ष ), ६. दुषमादुषमा (२१००० वर्ष) । इन कालभेदों में क्रमशः उत्तरोत्तर जीवों की आयु, श्री आदि में ह्रास होता जाता है।
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अवसर्पिणी कालगत चरम ह्रास के पश्चात् तथा उत्सर्पिणी काल का जब प्रथम आरा दुषमदुषम समाप्त हो जाता है और द्वितीय आरक दुषमा के लगते ही सकल जनों के अभ्युदय के निमित्त पुष्करसंवर्तक आदि महामेघ प्रकट होते हैं । पुष्करसंवर्तक नामक मेघ भूमिगत समस्त रूक्षता, आतप आदि अशुभ प्रभाव को शांत-प्रशांत करके धान्यादि का अभ्युदय करता है। इस मेघ में जल बहुत होता है। इसीलिए शिष्य ने जिज्ञासा व्यक्त की थी क्या व्यवहारपरमाणु पुष्करसंवर्तक मेघ से प्रभावित होता है ?
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(४) से णं भंते ! गंगाए महाणईए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा ? हंता हव्वमागच्छेज्जा । से णं तत्थ विणिघायमावज्जेज्जा ? नो तिणट्ठे समट्ठे, णो खलु तत्थ सत्थं कमति ।
[३४३-४ प्र.] भगवन् ! क्या वह व्यावहारिक परमाणु गंगा महानदी के प्रतिस्रोत (विपरीत प्रवाह ) में शीघ्रता से गति कर सकता है ?
[३४३-४ उ.] आयुष्मन् ! हां, वह प्रतिकूल प्रवाह में शीघ्र गति कर सकता है।
[प्रश्न ] तो क्या वह उसमें प्रतिस्खलना ( रुकावट) प्राप्त करता है ?
[उत्तर] यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि ( किसी भी) शस्त्र का उस पर असर नहीं होता है।
विवेचन — प्रतिकूल प्रवाह में भी उस व्यावहारिक परमाणु के प्रतिस्खलित न होने के उत्तर को सुनकर शिष्य ने पुनः अपनी जिज्ञासा व्यक्त की—
(५) से णं भंते ! उदगावत्तं वा उदगबिदुं वा ओगाहेज्जा ? हंता ओगाहेज्जा । से णं तत्थ कुच्छेज्ज वा परियावज्जेज्ज वा ? णो इणट्टे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमति ।
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सत्थेण सुतिक्खेण वि छेत्तुं भेत्तुं व जं किर न सक्का ।
तं परमाणु सिद्धा वयंति आदी पमाणाणं ॥ १०० ॥
[३४३-५ प्र.] भगवन् ! क्या वह व्यावहारिक परमाणु उदकावर्त (जलभंवर) और जलबिन्दु में अवगाहन कर सकता है ?
[३४३-५ उ.] आयुष्मन् ! हां, वह उसमें अवगाहन कर सकता है।
[प्रश्न] तो क्या वह उसमें पूतिभाव को प्राप्त हो जाता है— सड़ जाता है ?
अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति पृ. १६१