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________________ २४० अनुयोगद्वारसूत्र जानना चाहिए। किन्तु परमाणु, त्रसरेणु आदि स्वयं उत्सेधांगुल नहीं हैं। उनसे निष्पन्न होने वाला अंगुल उत्सेधांगुल कहलाता है। उत्सेधांगुल की निष्पत्ति की आद्य इकाई परमाणु है, अतः अब परमाणु आदि के क्रम से उत्सेधांगुल का सविस्तार वर्णन करते हैं। परमाणुनिरूपण ३४०. से किं तं परमाणू ? परमाणू दुविहे पण्णत्ते । तं जहा सुहुमे य १ वावहारिए य २ । [३४० प्र.] भगवन् ! परमाणु क्या है ? [३४० उ.] आयुष्मन् ! परमाणु दो प्रकार का कहा है, यथा—१. सूक्ष्म परमाणु और २. व्यवहार परमाणु । ३४१. तत्थ णं जे से सुहमे से ठप्पे । [३४१] इनमें से सूक्ष्म परमाणु स्थापनीय है अर्थात् यहां वह अधिकृत नहीं है। ३४२. से किं तं वावहारिए ? वावहारिए अणंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदयसमितिसमागमेणं से एगे वावहारिए परमाणुपोग्गले निप्पज्जति । [३४२ प्र.] भगवन् ! व्यवहार परमाणु किसे कहते हैं ? [३४२ उ.] आयुष्मन् ! अनन्तानंत सूक्ष्म परमाणुओं के समुदाय-समागम (एकीभाव रूप मिलन) से एक व्यावहारिक परमाणु निष्पन्न होता है। विवेचन— सूत्र में उत्सेधांगुल की आद्य इकाई परमाणु का स्वरूप बतलाया है। परम+अणु = परमाणु, अर्थात् संब द्रव्यों में जिसकी अपेक्षा अन्य कोई अणुत्तर (अधिक छोटा) न हो, जिसमें चरमतम अणुत्व हो या जिसका पुनः विभाग न हो सके, ऐसे अविभागी अंश को परमाणु कहते हैं। परमाणु सामान्यतया पुद्गलद्रव्य की अविभागी पर्याय है, किन्तु कहीं-कहीं अन्य द्रव्यों के भी सूक्ष्मतम बुद्धिकल्पित भाग को परमाणु कहा जाता है । इस दृष्टि से परमाणु के चार प्रकार हैं—१. द्रव्यपरमाणु, २. क्षेत्रपरमाणु, ३. कालपरमाणु, ४. भावपरमाणु। परमाणु से जो आशय ग्रहण किया जाता है, उसके लिए कर्मसाहित्य में अविभागप्रतिच्छेद शब्द का प्रयोग किया जाता है। ___ परमाणु, पुद्गलद्रव्य की पर्याय होने से रूपी—मूर्त है। उसमें पौद्गलिक गुण—वर्ण, गंध, रस और स्पर्श पाये जाते हैं। तथापि अपनी सूक्ष्मता के कारण वह सामान्य ज्ञानियों द्वारा इन्द्रियग्राह्य नहीं है—दृष्टिगोचर नहीं होता है। लेकिन पारमार्थिक प्रत्यक्ष वाले केवलज्ञानी और क्षायोपशमिक ज्ञानी (परम अवधिज्ञानी) उसे जानते-देखते हैं। सामान्यतया तो एक आकाशप्रदेश में एक परमाणु रहता है, लेकिन इसके साथ ही परमाणु में सूक्ष्म परिणाम व अवगाहन रूप ऐसी विलक्षण शक्ति रही हुई है कि जिस आकाशप्रदेश को एक परमाणु ने व्याप्त कर लिया है, उसी आकाशप्रदेश में दूसरा परमाणु भी पूर्ण स्वतन्त्रता के साथ रह सकता है। इतना ही नहीं, उसी आकाशप्रदेश में
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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