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नामाधिकारनिरूपण
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अवयवेणं
सिंगी सिही विसाणी दाढी पक्खी खुरी णही वाली । दुपय चउप्पय बहुपय णंगूली केसरी ककुही ॥ ८३॥ परियरबंधेण भडं जाणेज्जा, महिलियं निवसणेणं ।
सित्थेण दोणपागं, कविं च एगाइ गाहाए ॥ ८४॥ से तं अवयवेणं । [२७१ प्र.] भगवन् ! अवयवनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [२७१ उ.] आयुष्मन् ! अवयवनिष्पन्ननाम का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिए
शृंगी, शिखी, विषाणी, दंष्ट्री, पक्षी, खुरी, नखी, वाली, द्विपद, चतुष्पद, बहुपद, लांगूली, केशरी, ककुदी आदि। ८३
इसके अतिरिक्त परिकरबंधन विशिष्ट रचना युक्त वस्त्रों के पहनने से कमर कसने से योद्धा पहिचाना जाता है, विशिष्ट प्रकार के वस्त्रों को पहनने से महिला पहिचानी जाती है, एक कण पकने से द्रोणपरिमित अन्न का पकना और (प्रासादादि गुणों से युक्त) एक ही गाथा के सुनाने से कवि को पहिचाना जाता है। यह सब अवयवनिष्पन्ननाम कहलाते हैं। ८४
विवेचन— सूत्र में अवयवनिष्पन्ननाम की व्याख्या की है।
अवयवनिष्पन्न अर्थात् अवयवी के एक देश रूप अवयव का समस्त अवयवी पर आरोप करके अवयव और अवयवी को अभिन्न मानकर जो नाम रखा जाता है उसे अवयवनिष्पन्ननाम कहते हैं, जो शृंगी, शिखी आदि उदाहरणों से स्पष्ट है। शृंगी नाम शृंग (सींग) रूप अवयव के सम्बन्ध से, शिखी नाम शिखा रूप अवयव के सम्बन्ध से निष्पन्न हुआ है। इसी प्रकार विषाणी, दंष्ट्री, पक्षी आदि नामों के विषय में जानना चाहिए।
योद्धा, महिला, द्रोणपाक, कवि आदि शब्दों का प्रयोग परिकरबंधन आदि-आदि अवस्थाओं को प्रत्यक्ष देखने, सुनने से होता है और ये परिकरबंधन आदि योद्धा आदि अवयवी के अवयव रूप एकदेश हैं। इसलिए ये शब्द भी अवयव की प्रधानता से निष्पन्न होने के कारण अवयवनिष्पन्ननाम के रूप में उदाहत हुए हैं।
अवयवनिष्पन्न और गौणनिष्पन्न नाम में अन्तर— इन दोनों की नामनिष्पन्नता के आधार भिन्न-भिन्न हैं। अवयवनिष्पन्ननाम में शृंग आदि शरीरावयव या अंग-प्रत्यंग विशेष नाम के आधार हैं, जबकि गौणनिष्पन्ननाम में गुणों की प्रधानता होती है। इसलिए अवयवनाम और गौणनाम पृथक्-पृथक् माने गये हैं। संयोगनिष्पन्ननाम
२७२. से किं तं संजोगेणं ?
संजोगे चउबिहे पण्णत्ते । तं जहा—दव्वसंजोगे १ खेत्तसंजोगे २ कालसंजोगे ३ भावसंजोगे ४ ।
[२७२ प्र.] भगवन् ! संयोगनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [२७२ उ.] आयुष्मन् ! (संयोग की प्रधानता से निष्पन्न होने वाला नाम संयोगनिष्पन्ननाम है।) संयोग चार